Gustakhi Maaf: गुस्ताखी माफ़- राम की गलती थी क्या पापी नहीं पाप को मारना था…बिना मूंछ के हैं नत्थूलाल
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राम की गलती थी क्या पापी नहीं पाप को मारना था…
इंदौर में लगभग २० वर्ष पूर्व केवल चार से छह स्थानों पर ही रावणों का दहन होता था। धीरे धीरे रावणों के दहन में मिल रही प्रसिद्धि के चलते राम तो बढ़े नहीं पर रावणों की संख्या तेजी से बढ़ती गई और अब यह रफ्तार इतनी ज्यादा हो गई है कि शहर में २०० से अधिक स्थानों पर छोटे बड़े रावण जल रहे हैं। रावण जल रहे हैं पर कम नहीं हो रहे हैं। ऐसा लगता है रावण कितना शक्तिशाली था जो राम के द्वारा मारे जाने के बाद भी आज हर जगह दिखाई दे रहा है और राम कितने कमजोर हो गए हैं कि वह केवल राजनीति का मूल मंत्र बन गया है।
कारण जो भी रहा हो राम ने पापी को तो खत्म कर दिया पर पाप खत्म नहीं हो सके। पापी को तो हर कोई नष्ट कर सकता है अगर पाप नष्ट कर देते तो फिर रावण जलाने की जरुरत शायद नहीं रहती। दूसरी ओर धीरे धीरे राम राजनीतिक दलों के लिए प्रासंगिक होते जा रहे हैं।
क्योंकि यह कलयुग है और इसमे कुर्सी के आधार पर आस्थाएँ विश्वास पैदा होते हैं। इधर राम से छूटे कलयुग के लक्ष्मण अब मुसलमानों को भी रिझाने के लिए अपने प्रयास शुरु कर चुके हैं। इसे धर्म नहीं कार्ड कहा जाता है। और राजनीति में देश की जनता ताश के पत्ते जैसे हो गई है जो खेली जाती है। इधर राजनीति में धर्म का उपयोग तो दूर की बात है अब तो धर्म और राजनीति में ही घालमेल हो गया है।
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राजनीति में पहले नीति होती थी अब कूटनीति भी आ गई है। धर्म को कमजोर कंधे मिले तो राम हिंदुओं तक ही सीमित रह गये। नानक सिक्खों तक और ईसा मसीह ईसाइयों तक और मोहम्मद मुसलमानों तक वरना इन सब का संदेश को संपूर्ण मानव जाति के विकास और प्रेम का संदेश देने के लिए रहा है। आओ १३० करोड़ लोग मिलकर किसी मजबूत कंधे की तलाश करना अब छोड़ दे और अपने कंधों को मजबूत करने का प्रयास भी शुरु करें वरना स्वार्थी कंधे कहीं ऐसा न हो कि किसी दिन इस देश को कंधों पर ही ले जाए और हम रामनाम सत्य है बोलते ही रह जाए।
बिना मूंछ के हैं नत्थूलाल
इन दिनों शहर में एक टेलर मास्टर की बड़ी चर्चा है। संघ से लेकर सत्ता में काबिज कई नेता उनके द्वारे पर दस्तक दे रहे हैं। कई नेता जो राजनीति की सीढ़ी में नौ तक नहीं पहुंच पाए थे वे दस तक जाने के लिए उनका ही सहारा ले रहे हैं। उनके पास कई बड़े भाजपा दिग्गजों की पूरी नाप है तो कई की नाप वे ऊपर दे चुके हैं। एक महाराज भी उनके पास हैं। अब यह समझा जा सकता है कि जिनके पास महाराज हों तो राज में जगह मिल ही जाती है। देखना यह है कि कितने लोग अपने कुरते-पायजामों का इस्तेमाल उनके सौजन्य से कर पाएंगे। वे बिना मूछ के भी मूछों वाले नत्थूलाल से भारी है।
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