गुस्ताखी माफ़: (Umesh Sharma) सत्ता की फसल में उगे नेताओं ने जमीनी कार्यकर्ता को गला दिया
(गुस्ताखी माफ़: Umesh Sharma) भाजपा का जांबांज नेता जो भाजपा की नई संस्कृति और संस्कार की भेंट अंतत: चढ़ गया। भाजपा के जमीनी कार्यकर्ता का इस तरह जाना उन तमाम स्थापित नेताओं के लिए भी एक सबक है, जो तमाम रायशुमारी और कार्यकर्ताओं की पहचान को दरकिनार कर अपने हित की राजनीति करते हैं।
80 के दशक से भाजपा की सक्रिय राजनीति में अपना परिवार छोड़कर समर्पित हुए उमेश शर्मा के पिता की छावनी में एक छोटी सी होटल होती है। खुद उमेश शर्मा अपने जीवन में चाय बेचने से लेकर अखबार तक बांट चुके थे। छात्र जीवन से उनकी प्रखर वक्ता शैली में और निखार आता गया। धीरे-धीरे वे अपनी पहचान कायम करने में सफल रहे। फिर उन्हें प्रकाश सोनकर जैसे नेताओं का नेतृत्व मिला, जिन्होंने जीवन में अपने हित के लिए कभी समझौते नहीं किए थे।
कुछ इसी संस्कृति के कारण उमेश शर्मा ने भाजपा संगठन को ही जीवन में पिता के बराबर स्थान दिया और वे पार्टी के प्रति समर्पित रहे और 30 से अधिक राजनीतिक मुकदमों में भी खुद ही संघर्ष करते रहे। फिर भी ताकतवर भगतों की भक्ति से भी वे दूर रहे। भाजपा में नई राजनीति की परंपरा जो आका-काका और खोखा पर आकर टिक गई थी, वे उसके प्रभाव में नहीं आए और इसी कारण दो बार रायशुुमारी में भी शिखर पर नाम होने के बाद भी वे नई संस्कृति की कसौटी पर खरे नहीं उतर पाए।
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आयातित नेताओं और सत्ता की राजनीति का आनंद ले रही भाजपा में निष्ठा और समर्पण का महत्व खत्म होता गया। ऐसे में उमेश शर्मा जैसे जमीनी कार्यकर्ता तो उन तमाम कार्यकर्ताओं की पंक्ति है जिन्होंने पूरा जीवन खुद को बनाने की बजाय भाजपा के समर्पण में लगा दिया। परिणाम यह हुआ कि वे नई राजनीति और नई संस्कृति के नेताओं से पिछड़ गए।
फिर जैसा होता है कि भाजपा में ऐसे कार्यकर्ता के निधन पर केवल एक ही दिन बड़े नेता दिखाई देते हैं। इसका एक ओर उदाहरण भी यूं देखिए कि इसके पूर्व भाजपा का मंडल अध्यक्ष रहे सचिन मौर्य के निधन पर उसके घर मुख्यमंत्री से लेकर संगठन मंत्री तक दुखड़ा सुन आए, पर उसके बाद किसी ने भी उस परिवार के बारे में पूछने की जहमत भी नहीं रखी कि परिवार किस स्थिति में है। उमेश शर्मा की लोकप्रियता आज सोशल मीडिया पर दिखाई दे रही है। ऐसा कोई ग्रुप नहीं है जिस पर उमेश शर्मा को लेकर नहीं लिखा गया हो।
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