गुस्ताखी माफ़: आईए… कुछ समय तो गुजारिये नंदा नगर की गलियों में, गणेशजी और रमेशजी के साथ
(ramesh mendola) इन दिनों आपको इस क्षेत्र के विराट रूप के दर्शन तो होंगे ही, साथ ही आपको लगेगा कि किसी महोत्सव में शामिल हो रहे हैं। किसी जमाने में जब लोग महेश्वर में विद्वान और वैदो के ज्ञाता मंडन मिश्र के आश्रम पर जाते थे, तो उनके आश्रम से कुछ किलोमीटर पहले ही एहसास होने लगता था कि आश्रम आगे आने ही वाला है, क्योंकि पेड़ों पर बैठे तोते वैदों का पाठ करते हुए दिखते थे और वे ही मार्ग भी बताते थे। कलयुग में जरा व्यवस्था बदल गई है।
यदि आप गणेश महोत्सव के दिनों में क्षेत्र क्रमांक 2 के लिए खींची गई चूने की लाइन के करीब पहुंचने लगते हैं तो ही आपको दादा दयालू के विराट रूप का एहसास होने लगता है। यदि सड़कों पर आपको निसठ, सठ, जामवंत, बलरास, अंगद, सुग्रीव, नर-नाग, सुर-गंधर्व सड़कों पर पटा-बनैठी घुमाते हुए दिखें तो समझ लीजिए कि नंदा नगर में दादा के मठ के करीब आप पहुंच रहे हैं। इन सभी को देखने के बाद विचलित होने की जरूरत नहीं है। क्योंकि रात को होने वाले आयोजन के दौरान दादा दयालू के साथ देव, महादेव सहित तमाम देवता मंच पर मौजूद रहते हैं जो इन सभी को पुरस्कार के रूप में नकद राशि देते हैं और इसी के चलते क्षेत्र के लोग सुबह से ही अपने बच्चों को पौत-पातकर छोड़ देते हैं।
रात तक प्रतिफल भी मिल जाता है। दूसरी ओर जब आप रात को पहुंचे और नंदा नगर की गलियों में लम्बी-लम्बी लाइनें लगी हों, लोग बड़ी राजीखुशी अपने घर 56 भोग ले जा रहे हों तो मान लीजिएगा कि अब आप आश्रम के करीब पहुंच ही गए हैं।
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अब जब पहुंच ही गए हैं तो इस समारोह में मौजूद गणेशजी और रमेशजी के दर्शन आपको हो जाएंगे। हालांकि बड़ी तादाद में लोग गणेशजी से ज्यादा रमेशजी के दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं। त्रेता युग तक गणेश जी के दर्शन से जीवन धन्य होता था, और अब यदि रमेशजी के दर्शन हो जाएं और उनका आशीर्वाद मिल जाए तो समझ लें कि अगली दो पीढ़ी धन्यधान्य से परिपूर्ण हो जाएगी।
उनके चेहरे का विराट प्रभाव ऐसा है कि इंदौर और आसपास के अडाणी-अंबानी पूरी सामर्थ के साथ खड़े दिखते हैं और कार्यक्रम समाप्त होने के बाद वे दूर से ही पहचान में आ जाते हैं। क्योंकि जब तक वे जय गुरुदेव के शिष्य बन जाते हैं। क्षेत्र के लोग भी पहचान लेते हैं कि इस बार ये भिया अवतरित हुए थे। हर बार अलग-अलग अडाणी-अंबानी यहां पर दिखाई देते हैं। दूसरी ओर यहां पर कई अधिकारी भी सामान्य वैशभूषा में दिखाई देते हैं।
इनमें से दो बड़े पद वाले अधिकारियों से जब पूछा कि देवर्षी आप भी यहां गणेशजी के दर्शन करने आए हैं, तो उन्होंने कहा हम यहां ग्रहों की शांति के लिए आते हैं। इससे सालभर दिमाग में शांति बनी रहती है। तो फिर क्या है, समय कम है, कुछ समय तो बिताइये रमेशजी के साथ, अन्यथा गणेशजी तो हैं ही, थोड़ी मेहनत और कर लेंगे तो देव भी वहीं दिख जाएंगे, महादेव भी आसपास ही कहीं दिख जाएंगे और फिर इन सब के साथ शुद्ध घी का 56 भोग तो आपका इंतजार कर ही रहा है। यह धर्म कुछ इस प्रकार है कि मैंने 10 चिट्ठियां बांटी थी, मुझे बड़ा आशीर्वाद मिला, सारी तमन्नाएं पूरी हो गई। आप भी 10 चिट्ठियां बांटकर तो देखिए।
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