नो बिंदु पर नो दो ग्यारह हो सकती है तुकोगंज कमेटी…
(Dainik Dopahar Sulemani Chai) शहर में बड़ी ओर माली हालत से मजबूत वक्फ कमेटी तुकोगंज पचड़े में फंसी हुई है , पहले तो पिछली कमेटी में उपाध्यक्ष रहे असलम को किसी दूसरे असलम के गुनाहों का पुलिंदा बना कर वक्फ बोर्ड को धोखे में रखकर फरयादी असलम को गुनाहगार बताया गया, इसी के साथ उन्हें अध्यक्ष पद की दौड़ से बहार किया गया, फिर मस्जिद बनाने के नाम पर इंदौर के बाहर से भी लाखों का चंदा उगाया गया ,इसी के साथ तमीरी के नाम पर सिर्फ मस्जिद के बाहरी हिस्से की दीवारों को छील कर टाइल्स लगा दी गई है,अब पहला सवाल ये उठता है कि किसी दूसरे गुनाहगार असलम के गुनाहों का पुलिंदा से बेगुनाह असलम को बाहर करना, दूसरा वक्फ बोर्ड को धोखा देना, तीसरा जब मस्जिद का चंदा ओर किराया ही मस्जिद के लिए काफी है ,फिर दूसरे शहरों के सामने कटोरा फैलाने की क्या जरूरत, इन्ही बिंदुओं के साथ नो बिंदुओं पर भोपाल से असलम की शिकायत पर जांच बैठ चुकी है,अगर इन नो बिंदु पर जिम्मेदार गुनाहगार साबित होते है ओर सेटिंग फेल होती है तो कमेटी पर नो दो ग्यारह की कार्रवाही पक्की है।
पेलवान के नाम पर पहलवानी कर रहे, चंदन नगर के चौर
शहर में जमीनी जदुगरो की कमी नही है, गरीबो को सस्ते प्लाटो का झांसा देकर अपने जाल में फंसने वालो को प्रशानिक सहयोग भी जारी है, चंदन नगर में जफर एंड कम्पनी ने जेल की हवा खाने के बाद फिर से गरीबो का माल खाना शुरू कर दिया है,गीता नगर ,केशव नगर, इट भट्टा, सन्नी गार्डन के साथ ही दसियो जमीनों में जादूगरी करने पर जफर, जुनेद ,शादाब, नासीर छिपा ,वाजिद शाह, लियाकत शाह ,अज्जु इन मे से कई अपनी जादूगरी के चलते जमानत पर छुटे है, लेकिन फिर भी जादूगरी से बाज नही आ रहे,सूत्रों की माने तो तुलसी के पत्तो की महक से सभी आसानी से थाने ओर जेलों में सेटिंग कर लेते है,जिसके चलते ये लोगो को बेवकूफ बना देते है, अब पेलवान के नाम पर पहलवानी करने वालो पर प्रशासन कब तक मेहरबान रहता है ,ये बात देखने लायक रहेगी।
बड़े काम का मुफ़्ती…
पिछले एक हफ्ते से शहर में मुफ़्ती पर बहस छिड़ी हुई है। अमूमन एक शहर में एक ही बड़ा मुफ़्ती होता है। लेकिन शहर हर का मुस्लिम तबका अपना अपना मुफ़्ती बनाने पर तुला है। ज़रूर मुफ़्ती का पद बड़े काम का होता है।इसका चेहरा आगे कर पूरे देश मे वाहवाही और चंदे का खेल आसान हो जाता है। मुफ़्ती ए मालवा नूरुल हक़ वैसे तो सीधे किसी मदरसे से नही जुड़े है । इसी के साथ दो अन्य मुफ़्ती सीधे मदरसे से से जुड़े है। खेल समझ आ जाता है कि आखिर क्यों मुफ़्ती का पद ज़रूरी है। वैसे किसी भी मुफ़्ती को मिल्लत के मौजूदा मसाइल से कोई सरोकार नही होता।
ये अपनी ही खानकाह तक सीमित रहते है। लेकिन जब अपनी दस्तार पर खतरा नज़र आता है तो बाहर निकल आते है। एक तबके ने मुफ़्ती मज़हर को मालवा का प्रमुख मुफ़्ती बनाने के लिए सारे नियम ताक पर रख दिये थे, वही मौलाना अनवर ने भी अपने मुफ़्ती के लिए अपने ही नियम बना लिए और बरकाती कोम का नया मुफ़्ती बनवा डाला, लेकिन अब मिल्लत ने तीसरे मुफ़्ती को नकार दिया है।बचे दोनो में नुरुल हक ज्यादा काबिल है, लेकिन कोम के बेगुनाहो पर कार्रवाही पर इन दोनो की चुप्पी भी सवाल पैदा करती है। (Dainik Dopahar Sulemani Chai)
दुमछल्ला…
पांच महीनो में अल्पसंख्यक मोर्चे का एक भी पंच नही
बीजेपी में शेख असलम साम दाम के सहारे अल्पसंख्यक मोर्चे में नगर अध्यक्ष पद तो ले आये,लेकिन पाँच महीने में मोर्चे का एक भी कार्यक्रम , आयोजन, पर्दशन नही हुवा इसी के साथ अल्पसंख्यक समाज के लिए एक बार भी मैदान में भी नही उतरे ,ये तो ठीक है पर जब दूसरे सभी मोर्चे अब तक अपनी टीम बना चुके है ,वही अल्पसंख्यक मोर्चा अब तक शहर भर से बीस तीस लोगो की टीम भी नही बना पाई है ,हा पांच बार गोरव बाबू की ख़री ख़री जरूर सुन चुके है,इस पर गौरव बाबू का कहना भी सही है, की रेवरियो के समय तो लेन लग जाती है और काम के समय सब गायब हो जाते है।।