इंदौर। भाजपा के पूर्व विधायक और पूर्व पार्षद ने नगर निगम के सबसे बड़े 1700 करोड़ रूपए के नाला टेपिंग घोटाले पर सवाल उठाए थे। इस घोटाले की शिकायत भोपाल तक पहुंची थी, जिस पर जांच भी बैठाई गई थी, लेकिन नतीजा आज तक सामने नहीं आया। घोटाले के जिम्मेदार अधिकारी आज भी नगर निगम की कई योजनाओं पर काम कर रहे है। यहां सवाल ये भी उठता है, की आखिर कचरा प्रबंधन, जल कर, नाला टेपिंग, सीवरेज पर शहर में टैक्स लिया जाता है, तो जलजमाव की सजा जनता क्यों भुगते। शहर में आज भी होलकर जमाने के समय डाली गई पाईप लाईन बेहतर स्थिति में काम कर रही है । एक्सपर्ट ने भी सर्वे और डाटा तैयार किए बिना नाला टेपिंग पर करोड़ो रुपए खर्च करने पर सवाल उठाए हैं। इंदौर की भौगोलिक स्थिति और बारिश के पानी के प्राकृतिक बहाव का ज्ञान नहीं लिए बगैर पिछले दिनों स्वच्छता अभियान में नगर निगम के इंजीनियरों ने नाला टेपिंग के नाम पर वॉटर प्लस का तगमा हासिल कर लिया। यह काम और कोई नहीं बल्कि निगम के ऐसे इंजीनियरों जिनकी देखवख में हुआ, जो बरसो से इंदौर में ही रहकर निगम की योजनाओं पर अव्यवहारिक ठंग से राशि खर्च कर रहे है। निगम के ऐसे अफसरों की कार्यशैली पर भाजपा के नेता ही सवाल उठा चुके है। पूर्व विधयाक गोपीकृष्ण नेमा ने पूरे शहर में बारिश के चलते हुए जलजमाव के लिए निगम अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराया है, उन्होंने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि निगम में प्रशासक काल के दौरान कचरा प्रबंधन, जल कर,नाला टेपिंग, सीवरेज पर शहर में टैक्स लगाया गया था, उस टैक्स का विरोध 31 मार्च 2021 को सबसे पहले मैंने किया था। नेमा का यह वीडियो एक साल पुराना है, लेकिन उसमें पूछा गया सवाल आज भी वैसा जा वैसा ही है, क्योकि एक बार फिर बारिश में जलजमाव पहले से ज्यादा बदतर स्थिति में ला दिया है।
वहीं पूर्व भाजपा पार्षद व नगर निगम यातायात एवं परिवहन प्रबंधन विभाग प्रभारी दिलीप शर्मा ने एक साल पहले सीवरेज प्रोजेक्ट में गड़बड़ियों को लेकर चार पेज की तेरह बिंदुओं की विस्तृत शिकायत मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान , नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह को सौंपी थी। इस मामले में इंदौर के पूर्व महापौर कृष्ण मुरारी मोघे ने नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह से प्रत्यक्ष मुलाकात करते हुए उच्च स्तरीय जांच का आग्रह किया था। नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह ने तत्काल इस मामले में भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारियों से जांच कराने के निर्देश जारी कर दिए थे, लेकिन इस जांच का नतीजा क्या हुआ यह अभी तक सामने नहीं आया है।
सात साल पहले २६८ थे जलजमाव वाले क्षेत्र, आज भी वहीं स्थिति
बड़ा बिलावली, छोटा बिलावली और लिंबोदी जैसे तालाब अभी भी खाली है। नदी नालों में भी पानी सामान्य नजर आ रहा है, लबालब है तो सिर्फ सड़कें और चौराहे, सड़कों पर भले ही कारे तैर रही है, लेकिन नदी की गंदगी यथावत है। नगर निगम के जनकार्य और जलकार्य विभाग में वर्षों से जमे अफसर इसकी सबसे बड़ी वजह है जिन्होंने करोड़ों की फौरी योजनाएँ बनाई और अंजाम तक पहुंचाने में सफल नहीं हुए। निगम सीमा में २२०० किमी लंबी सिवरेज लाइन डाल रखी है। दूसरी ओर स्टार्म वाटर लाइन २५० किमी है। इनमे भी आधी विकास प्राधिकरण तो आधी नगर निगम ने डाली है। स्वयं निगमायुक्त प्रतिभा पाल की रिपोर्ट के मुताबिक शहर में ८०० किमी की स्टार्म वॉटर लाइन की जरुरत है। २०१२ से २२ के बीच दस साल में १२ हजार करोड़ से ज्यादा के काम हुए और इनमे से ६ हजार करोड़ से ज्यादा पानी की निकासी पर खर्च किये गये।
२०१५ में अमृत के लिए नगर निगम ने डीपीआर भेजी जिसमे लिखा है कि इंदौर में स्टार्म वॉटर लाइन का नेटवर्क १२६ किलोमीटर है। सड़कों किनारे नालियां और पाइप लाइन नहीं है। २६८ जगह जल जमाव होता है। इसलिए ८८०.४१ करोड़ के चार प्रोजेक्ट मंजूरी के लिए भेजे थे ताकि स्टार्म वॉटर लाइन का नेटवर्क बढ़ाकर नदी नालों का चेनेलाइजेशन हो सके। ७०० करोड़ से ज्यादा खर्च हो चुके हैं। कुल १२२.८१ किमी लंबी नदी और छह नालों का चेनेलाइजेशन किया जा चुका है। हाल फिलहाल स्टार्म वॉटर का नेटवर्क २५० किमी हो गया है और २५० से अधिक जगह पर अभी भी जलजमाव हो रहा है। देखा जाए तो सिवरेज नेटवर्क जलकार्य विभाग के अंतर्गत आता है। जबकि स्टार्म वॉटर लाइन जनकार्य विभाग के अंतर्गत है। जनकार्य विभाग की व्यवस्था इंजीनियर अशोक राठौर और दिलिप सिंह चौहान के बीच बंटी हुई है। जबकि जलकार्य के इंचार्ज सुनिल गुप्ता है।
शिकायतकर्ता पूर्व पार्षद के बदले स्वर, शिकायत नहीं सुझाव
इस मामले को लेकर शिकायत कर्ता पूर्व भाजपा पार्षद एवं यातायात एवं परिवहन प्रबंधन विभाग प्रभारी दिलीप शर्मा ने निष्पक्ष जांच और दोषी इंजीनियरों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की मांग की थी, लेकिन अब उनके स्वर बदल गए है। शर्मा ने कहा कि मैने शासन को सीवरेज प्रोजेक्ट की गड़बड़ियों पर सुझाव दिया था, जिस पर काम हो रहा है। दरअसल इंदौर नगर पालिक निगम ने वर्ष 2011 से जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण योजना (छ्वहृहृक्ररू) के तहत इंदौर शहर के जल मल निकासी पर आज तक लगभग 1700 से 1800 करोड़ रुपए तक खर्च कर दिया है। इस योजना के तहत डाले गए पाइप की उम्र लगभग पचास साल बताई गई थी, इसके बावजूद पिछले दस साल में डाले गए पाइपों को फिर से बदल दिया गया। वहीं भोपाल में कई गई शिकायत पर इंदौर नगर निगम के नाला टेपिंग घोटाले की जांच को दबाने की बात भी सामने आई।
मध्यप्रदेश के नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह ने इस मामले में वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों की हाईपॉवर कमेटी बनाने के निर्देश दिए थे। नगरीय प्रशासन विभाग मंत्रालय वल्लभ भवन में मंत्री के इस निर्देश के बाद हड़कंप मच गया। लेकिन नगरीय प्रशासन विभाग में बैठे अधिकारियों ने कमेटी बनाने की बजाय सीधे-सीधे इंदौर नगर निगम से प्रतिवेदन बुलवा लिया था। उस समय नगरीय प्रशासन विभाग के प्रमुख सचिव रहे मनीष सिंह ने इस मामले में व्यक्तिगत रुचि लेते हुए इंदौर नगर निगम से प्रतिवेदन बुलवा लिया था।