गुस्ताखी माफ़-नींव के पत्थर हिल रहे हैं नए प्रयोग से…कांग्रेस में भी लग रही है सेंध…

नींव के पत्थर हिल रहे हैं नए प्रयोग से…

भारतीय जनता पार्टी की प्रयोग स्थली बने इंदौर में नेताओं से लेकर कार्यकर्ताओं को नई व्यवस्था हजम नहीं हो रही है। नेताओं को लग रहा है कि भाजपा को खड़ा करने वाले नींव के पत्थर बुरी तरह से हिलाए जा रहे हैं। दूसरी ओर कार्यकर्ताओं को भी यह लग रहा है कि उन्हें पार्टी में कोई सम्मान नहीं मिल रहा है। पार्टी के बड़े नेताओं को लग रहा है कि अब भाजपा की नाव नदी के तेज पानी में पूरी गति से चल रही है। किसी को भी चप्पू चलाने की जरूरत नहीं है। ऐसे में कार्यकर्ताओं की भी जरूरत नहीं है क्योंकि किए गए कार्य और बनाए गए सदस्यों के कारण भाजपामय हो गया है शहर। अब किसी की जरूरत नहीं है। इसके चलते भाजपा का बड़ा वर्ग नाराज हो रहा है। खासकर वे नेता और कार्यकर्ता जो पिछले 20 सालों से पार्टी में समर्पित भाव से काम कर रहे थे और वे भी असंतोष की बयार में बहने लगे हैं। पहली बार वार्डों में खुलकर विरोध दिखाई दे रहा है। दूसरी ओर भाजपा में अब एक भी वरिष्ठ नेता ऐसा नहीं है जो कार्यालय पर बैठकर कार्यकर्ताओं को पुत्रवत बात कर समझा सके। कई स्थापित नेता सुमित्रा महाजन से लेकर कृष्णमुरारी मोघे, सत्यनारायण सत्तन, बाबूसिंह रघुवंशी सभी को भाजपा घर बैठा चुकी है। दूसरी ओर भाजपा के नगर अध्यक्ष के खुद के ही अपने गणित बने हुए हैं। ऐसे में इस बार भाजपा विद्रोही कार्यकर्ताओं को समझाने में पूरी सफल नहीं हो पाएगी। भाजपा का असंतोष अब सड़कों पर भी आ गया है। कई लोगों ने अपना प्रचार भी शुरू कर दिया है। अब देखना होगा कि भाजपा के नए समीकरण कहां तक ले जाते हैं।

कांग्रेस में भी लग रही है सेंध…

कांग्रेस के कई वार्डों में उम्मीदवारों को लेकर कार्यकर्ता भी मैदान पकड़ चुके हैं। हालांकि जो उम्मीदवार मैदान में हैं वे पहले भी हारकर घर जा चुके हैं। ऐसे में उन्हें ज्यादा चिंता नहीं है। 8 वार्डों में आज भी उम्मीदवार के नाम के अंतिम रूप नहीं मिला। ऐसे में अब कई वार्ड जीतकर भी हारने की हालत बन गई है। वार्ड 66 में सिंधी बहुल क्षेत्र होने के बाद भी यहां से सिख समाज के उम्मीदवार गुरमीत सुखधर गिल को उम्मीदवार बनाया है। यहां पर मुकेश सचदेव जो स्व. नंदलाल सचदेव के पुत्र हैं और लम्बे समय से समाज में पकड़ के साथ कांग्रेस में भी सक्रिय रहे। यहां की उम्मीदवारी कांग्रेस को ले डुबेगी। दूसरी ओर वार्ड 84 की स्थिति भी यही बनी हुई है। यहां दो बार चुनाव हार चुके दिलीप कुंडल की पत्नी को उम्मीदवार बनाया है। इसके कारण इस वार्ड में भी भारी विरोध हो रहा है। ऐसे में कांग्रेस के लिए यह दोनों वार्ड ही विरोध के कारण नुकसान में रहे।
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