भाजपा का इंदौरी महापौर कई पेंचों में उलझने के बाद अब दिल्ली दरबार पहुंच गया है। दिल्ली में एक बार फिर नई सिरे से कुछ नए नामों पर विचार के संकेत मिल रहे हैं। दूसरी ओर भाजपा कार्यकर्ताओं और नेताओं के साथ द्रोपदी से ज्यादा बुरा चीर हरण हो रहा है। उनकी कोई नहीं सुन रहा है। जनप्रतिनिधि ठगे हुए से खड़े हैं, आवाज नहीं निकल रही है। जो नाम सामने आ गए हैं, वे कार्यकर्ता के लिए किसी करारे तमाचे से कम नहीं हैं। कार्यकर्ता खुद ही मान रहे हैं कि भाजपा में ऊपर बैठे नेताओं ने मान लिया है कि कार्यकर्ता उनकी भेड़ है, जिधर चाहेंगे, उधर चली जाएगी। आंखें मूंदकर प्रयोग हो रहे हैं।
कार्यकर्ता कहार की हैसियत से ही अब भाजपा में बचा है। दूसरी ओर अब लड़ाई भोपाल से निकलकर दिल्ली पहुंच गई है। यहां पर पुष्यमित्र भार्गव के नाम को वी.डी. शर्मा द्वारा आगे बढ़ाया गया है। भार्गव, दत्तात्रेय होसबोले के शिष्य हैं और यदि उन्हें उम्मीदवारी मिलती है तो इसी के साथ होसबोले और वी.डी. शर्मा युद्ध की शुरुआत इंदौर में हो जाएगी। दूसरी ओर निशांत खरे पूरी तरह से प्रशासनिक नाम है, जिसे मुख्यमंत्री ही केवल किसी बड़े प्रशासनिक अधिकारी के जिताने के दावे के बाद आगे बढ़ा रहे हैं। दिल्ली में अब जहां ज्योतिरादित्य सिंधिया ने ग्वालियर में अपना महापौर उम्मीदवार चाहा है तो उसके बदले में नरेंद्रसिंह तोमर ने इंदौर में सुदर्शन गुप्ता का नाम पूरी ताकत से रखा है। दिल्ली में जो बचे हुए नाम हैं, उसमें रमेश मेंदोला और गोविंद मालू, मनोज द्विवेदी भी अभी तक मैदान में हैं, परंतु इन सबके बाद भी यदि गोपीकृष्ण नेमा की उम्मीदवारी तय होती है तो यह संगठन, कार्यकर्ता और भारतीय जनता पार्टी तीनों की जीत होगी। भाजपा के एक बड़े नेता का कहना है कि पार्टी ने समझ लिया है कि कार्यकर्ता और नेता इंदौर के खोटे हो चुके हैं और ऐसे में उन्हें खरे की जरूरत है… तो फिर भाजपाई कहारों एक बार फिर डोली उठाने को मैदान में दिखेंगे।