(आशीष साकल्ले अटल) इंदौर। ऐसा लगता है मानों इंदौर का वाशिंदा प्रयोगशाला का मैंढक है। यही वजह है कि अफसर आते हैं, जाते हैं, रोजाना नए-नए ख्वाब दिखाते हैं और हम हैें कि देखते ही रह जाते हैं। शहर में मानसून की आमद होने जा रही है। स्वच्छता का दंभ भरने वाले नगर निगम के अधिकारी कहां खो जाएंगे, जिम्मेदार कितना बरगलाएंगे, यह तो आने वाला समय ही बताएगा। फिर, स्मार्ट सिटी की हकीकत दो-चार दिन में ही मानसून की आमद से सामने आ जाएगी। न तो पेयजल की व्यवस्था में सुधार हुआ और न ही सड़कें दुरस्त हुई। प्रदूषण के नाम पर हवा कितनी दूषित हुई और यातायात के नाम पर दुर्घटनाओं पर कितनी लगाम लगी, यह तो आंकड़े खुद बयान करते हैं। सवाल यह उठता है कि क्या इंदौर का वाशिंदा प्रयोगशाला का मेंढक है।
देखा जाए तो इंदौर ने स्वच्छता में पंच लगाया और अब छक्का लगाने जा रहा है। इसके बाद खान-पान के मामले में भी इंदौर नंबर का तमगा ले आया। मेहनत भले ही इंदौर के व्यापारियों और वाशिंदों ने की लेकिन तमगा अफसरों ने हासिल कर अपनी कालर ऊंची करने में देर नहीं लगाई। टेक्स पर टेक्स और उस पर पैनल्टी अलग। आखिर कब तक चलता रहेगा यह खेल । न तो कान्ह-सरस्वती साफ हुई और न ही लोगों को पर्याप्त मात्रा में पानी उपलब्ध हो रहा है। टंकी पर टंकियां बन रही है, लाइन पर लाइनें बिछ रही है। फिर भी आम आदमी प्यासा का प्यासा। अब बात चल रही है प्रदूषण से निपटान की तो इसके लिए भी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने कमर कस ली है। कल-कारखानों को ताकीद की जा रही है, निर्देश दिए जा रहे हैं, लेकिन प्रदूषण मापने की सही व्यवस्था ही शहर में नहीं है। रही सही कसर यातायात विभाग पूरी करने जा रहा है। चालानी कार्यवाही कर सरकार का खाली खजाना भर कर यातायात विभाग के जिम्मेदार अपने अफसरों के पास अपना नंबर बढवाने में पीछे नहीं है। बावजूद इसके, न तो हादसे टल रहे हैं और न ही लोगों की जान बच रही है। हादसे पर हादसे हो रहे हैं, लेकिन जिम्मेदारो को कोई लेना-देना नहीं।
आइये पुरानी यादें ताजा कर ली जाए… शहर ने स्वच्छता का पंच मार लिया, अफसरों ने पुरस्कार प्राप्त कर अपनी कालर ऊंची कर ली, खुद की पीठ भी थपथपा ली और शहर के लोग भी खुश हुए। लंदन की टेम्स नदी की तर्ज पर कान्ह-सरस्वती को संवारने की बाते कही गई, दावे किए गए, नाव और मौटरबोट चलाने तक के दावे किए गए, लेकिन हकीकत शहर के मध्य क्षेत्र में कृष्णपुरा छत्रियों पर ही देखी जा सकती है। आखिर इस सबकी कीमत किसने चुकाई… स्मार्ट सिटी का प्रोजेक्ट आया और इंदौर तीसरे नंबर से पहले नंबर पर पहुंच गया। सैकड़ों हजारों लोगों के आशियाने नेस्तनाबूत हो गए, सड़कें तबाह कर दी गई, व्यापार-व्यवसाय की बाट लग गई और हम ताकते रह गए। आखिर करते भी तो क्या… आखिर सरकार से लड़ने की हिमाकत कौन कर सकता है… सीएम हेल्प लाइन में शिकायत का ढोंग करने की जुर्रत जिसने की उसे नगर निगम अफसर अपनी औकात दिखाने में देर नहीं लगाते । अब खान-पान का फितूर शुरू किया, बड़ी-बड़ी दुकानों और मार्केट का सर्वे करा दिया, लेकिन हकीकत यह है कि खाद्य विभाग की प्रयोगशाला भी तैयार नहीं हुई। अभी भी भोपाल की प्रयोगशाला का मुंह ताकते रहते हैं। कोर्ट में मामला पहुंचा तो वहां भी झूठे बयान और दलीलें…
अब बारिश का टूटेगा कहर, फिर डूबने जा रहा है शहर निगम और स्थानीय प्रशासन लाख दावे करे, लेकिन न तो सीवरेज की स्थिति में कोई सुधार हुआ है और न ही नाला टेपिंग का कोई नतीजा नजर आ रहा है। पिछले बरस जब एक दिन में तीन-चार इंच बारिश हुई तो शहर की कई बस्तियां जलमग्र हो गई थी। इसके बाद हालात सुधारने के लिए जिन नालों की टेपिंग की गई थी उन्हें खोला गया तो हालात सुधरे। अब एक बार फिर यही स्थिति बन सकती है। यदि शहर में चौबीस घंटे में चार-पांच इंच मूसलाधार बारिश हो गई तो समझिए कि यहां नाव चलाने की नौबत आ जाएगी।
अफसर आए-गए, उनके जाते ही व्यवस्था का हो गया बंटाढार कुछ समय पहले तत्कालीन कलेक्टर लोकेश जाटव और डीआईजी रुचिवर्धन मिश्र ने शहर की यातायात व्यवस्था को सुधारने का ब$ीड़ा उठाया था। इसके लिए उन्होंने शहर के विभिन्न चौराहों का दौरा कर निरीक्षण कर व्यवस्था सुधारने के निर्देश भी दिए, लेकिन उनके जाते ही व्यवस्था सुधारने का सारा मामला ही अधर में लटक गया। अब हालात यह हैं कि न तो अधिकांश लेफ्ट टर्न चौड़े किए गए, न ही रोटरियां छोटी की गई या हटाई गईं और न ही ट्रेफिक सिंग्रल लगे। इस वजह से दुर्घटनाओं में कमी आने की वजाए उनमें इजाफा ही हुआ। लोग घायल हो रहे हैं, जान गंवा रहे हैं, लेकिन जिम्मेदार अफसोस जताने और व्यवस्था में सुधार करने का आश्वासन देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं।
हादसों का शहर है यह होते ही रहेंगे… हाल फिलहाल शहर को यातायात में भी नंबर वन बनाने की कवायद की जा रही है। इसके लिए यातायात पुलिस को एक ही रास्ता नजर आ रहा है और वह है चालानी कार्रवाई का। रोजना सैकड़ों चालान बनाए जा रहे हैं और उसकी आड़ में ट्रेफिक जवान भी अपनी जेब गरम करने में पीछे नहीं हैं। बावजूद इसके, कहने-सुनने वाला कोई नहीं है। यातायात जवान चालान काटने में ही व्यस्त हैं, यातायात व्यवस्था सुधारने की उन्हें फुर्सत ही नहीं है। जाम लग रहा हो या एक्सीडेंट हो रहा हो, उन्हें कोई लेना-देना ही नहीं है। चाहे
जनता जाए भाड़ में… जनता करने लगेगी तिरस्कार तो धरा रह जाएगा आपका पुरस्कारअब शहर सरकार और उसके विभिन्न विभागों को यह समझ लेना चाहिए कि इंदौर शहर के वाशिंदे किसी प्रयोगशाला के मेंढक नहीं है। आप पुरस्कार लेते रहिए, लेकिन यह भी याद रखिए कि यदि पब्लिक ने आपका तिरस्कार करना शुरू कर दिया तो आप कहीं के नहीं रहेंगे। निर्णय आपको लेना है । यदि आपको पुरस्कार लेना हेै तो शहर की आवाम को इससे कोई गुरेज नहीं, लेकिन यदि जनता की कीमत पर आप पुरस्कार लेना चाहते हैं तो तिरस्कार के लिए भी तैयार रहिए। यह बात स्थानीय प्रशासन के साथ ही सरकार को भी समझ लेना चाहिए।