गुस्ताखी माफ़-पांच सौ भाजपाई कहार दल से मुक्त होंगे….प्रशासन की धुन पर नृत्य करने वाला चाहिए महापौर…विधानसभा के लिए नए ढोंग, धतूरे बंटेंगे…

पांच सौ भाजपाई कहार दल से मुक्त होंगे….
भारतीय जनता पार्टी इस निकाय चुनाव के बाद पांच सौ से अधिक ऐसे कार्यकर्ताओं से मुक्त हो जाएगी, जो लंबे समय से संगठन के लिए समर्पित होकर काम कर रहे हैं। इनमें से दो सौ से अधिक कार्यकर्ता ऐसे भी होंगे, जो संगठन की ताकत माने जाते हैं। समय-समय पर वे पार्टी के संकटमोचक भी बनते थे। इनमें से कई ने पार्टी का कोष एकत्र करने के लिए बड़ी भूमिका अदा की थी। निकाय चुनाव में पार्षदों की उम्मीदवारी को लेकर किए जा रहे चयन में यह सभी विधायक की नजर में निष्क्रिय हैं, क्योंकि इनमें से कई विधायकों के यहां हाजिरी भराने नहीं जाते हैं। विधायक-प्रेम के चलते विधायक अपने साथ लटके रहने वाले नकुल-सहदेव को पहली प्राथमिकता देंगे और इसी के कारण इस प्रकार के कार्यकर्ताओं को उम्मीदवारी मिल पाना बेहद मुश्किल होगा और ये भविष्य की राजनीति से अपने आपको पूरी तरह मुक्त कर लेंगे। परिणाम आने वाले चुनाव पर दिखाई देने लगेगा। कई कार्यकर्ता ऐसे हैं, जो अब पूरा जीवन समर्पित करने के बाद उम्र के उस मुहाने पर आकर खड़े हो गए हैं, जहां से वे न घर में सम्मान ले पाएंगे और दूसरी ओर पार्टी उनका उपयोग कर उन्हें मुक्त करने जा रही है, वहीं कांग्रेस की वैतरणी में बैठकर भाजपा में गंगा नहा रहे तमाम पेशेवर कार्यकर्ता इस बार भाजपा कार्यकर्ता पर भारी दिखाई पड़ रहे हैं, यानी यदि वे बीस सीटों पर भी अपने उम्मीदवार ले आए तो उन्हें बीस बड़े भाजपा कार्यकर्ताओं की राजनीतिक हत्या करने का सौभाग्य भी मिल पाएगा। भाजपा कार्यकर्ता भी आजकल बोलने लगे हैं क्या मालूम कौन हार्दिक पूरे जीवन अलंकार की भाषा में भाजपाइयों को कोसता रहे और उसके बाद हम जैसे कहार ही उसे लेकर गाते हुए फिरेंगे… चलो रे डोली उठाओ कहारों।

प्रशासन की धुन पर नृत्य करने वाला चाहिए महापौर…


इन दिनों भाजपा में पार्षदों से ज्यादा महापौर मैदान में दिखाई दे रहे हैं। एक अनुमान के अनुसार पचास से अधिक महापौर उम्मीदवार इन दिनों लोटन कबूतर बने हुए हैं। इनमें कई नाम गंभीर हैं, पर कई ऐसे हैं, जो कह रहे हैं तोप का लायसेंस मांग लो तो भाजपा में तमंचे का मिल जाएगा, परंतु एक नाम ऐसा है, जिसे आगे बढ़ाने में प्रशासनिक स्तर पर बड़ा प्रयास चल रहा है। घड़ी-घड़ी कहा जा रहा है यह संघ की ओर से दिया गया नाम है, जबकि संघ में इन दिनों इस नाम को लेकर दो फाड़ हो गई है। यह नाम है डॉ. निशांत खरे का। निशांत खरे कोरोना काल में सत्ता और प्रशासन के बीच समन्वय का काम कर रहे थे। भाजपा नेताओं की भाषा में इसे लाइजन कहते हैं। इस नाम को लेकर इन दिनों भाजपा में ही बड़ी दरार पैदा हो गई है। भाजपा के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि अधिकारियों के टुकड़ों पर पल रही और चल रही भाजपा के शिखर पुरुषों ने यह मान लिया है कि उनका कार्यकर्ता वैचारिक रूप से शून्य होता है, बौद्धिक निर्णय लेने की क्षमता उसमें नहीं होती है। इस प्रकार के नाम भाजपा के तमाम योग्य और जमीनी कार्यकर्ताओं के काम पर करारा तमाचा हैं, जिन्होंने अपनी कार्यप्रणाली से इसी नगर निगम में असंभव को संभव कर दिखाया। कैलाश विजयवर्गीय के कार्यकाल में शुरू हुई विकास की प्रसव-पीड़ा का परिणाम है कि शहर को चारों ओर विकास का मॉडल देखने को मिल रहा है और हर महापौर, चाहे उमाशशि शर्मा के कार्यकाल में शहर में नए उद्यान मिले तो कृष्णमुरारी मोघे ने निगम की मितव्ययता रोकी तो वहीं मालिनी गौड़ के कार्यकाल में शहर को स्वच्छता का तमगा लगा। इनके प्रशासनिक अनुभव ही काम आए, परंतु अब जनप्रतिनिधियों की आवाज खत्म होने के बाद ऐसे नामों का सामने आना भाजपा को ही गले नहीं उतर रहा। आज भी अपनी कार्यप्रणाली से सत्यनारायण सत्तन से लेकर भंवरसिंह शेखावत, गोपीकृष्ण नेमा, मधु वर्मा तक अपनी पहचान कायम कर पाए हैं। इसी भाजपा में पहले जब यह चिंतन और मंथन की पार्टी के साथ शुचिता और संस्कार की पार्टी होती थी, तब वरिष्ठता और अनुभव के आधार पर महापौर का चयन किया जाता था, अब लाइजन के आधार पर। अधिकारी भी चाहते हैं कि महापौर अब ऐसा हो, जो उनकी उंगलियों पर शानदार नृत्य कर सके, तभी तो आगे बढ़ेगा इंदौर।

विधानसभा के लिए नए ढोंग, धतूरे बंटेंगे…


इंदौर शहर और उसके आसपास की विधानसभाओं में इन दिनों नेताओं को यह समझ में आ गया है कि उन्हें चुनाव जीतना है तो क्षेत्र क्रमांक दो दादा दयालु को अपना आदर्श मानते हुए उसी कार्य को आगे बढ़ाएं। अब इसमें चाहे तीरथ दर्शन हो या फिर बाबा दर्शन हों। जो भी हो, कामकाज चलता रहे। क्षेत्र क्रमांक दो की आधी आबादी के बारे में कहा जाता है कि यह क्षेत्र फुरसतियों का है। यहां दोनों प्रकार के लोग मिलते हैं, यानी टाइम काटना कैसे है, यह सीखा जा सकता है। किसी बड़े महाराज की क्या, चवन्नी-अठन्नी महाराजों की कथा में भी भोजन-भंडारे के साथ लोग मिल ही जाएंगे। कुछ यही स्थिति दूसरी विधानसभाओं में भी बनने लगी है। पिछले दिनों सीहोर वाले प्रदीप मिश्रा महाराज यहां पर ऐसे-ऐसे ढोंग-धतूरे बांट गए कि अच्छा-खासा काम छोड़कर कई लोग बेल के फल को खोखला कर उसमें पानी लेकर मंदिरों में चढ़ाते रहे तो कई बिल्व-पत्र की डंडियां लेकर अपने घरों में घुमाते रहे। कुल मिलाकर हासिल कुछ नहीं रहा। दूसरी ओर दूसरे बाबा भी इसी प्रकार की रेवड़ी बांट गए। अब कौन समझाए इन बाबाओं को कि यदि कथा क्षेत्र में दादा दयालु का भोजन-भंडारा बंद हो जाए तो उंगली पर लोग गिने जा सकेंगे। इधर अब प्रदीप मिश्रा बाबा फिर ढोंग-धतूरे की दुकान देपालपुर के बाद राऊ में चलाएंगे। जब यह समझ में आ ही रहा है कि इस प्रकार की कथाओं में मिलने वाले ज्ञान और ढोंग-धतूरों से जीवन सार्थक हो रहा हो तो फिर पढ़ाई-लिखाई की जरूरत ही नहीं है। वैसे भी कथा-कारोबार आज की तारीख में करोड़ों के ऊपर पहुंच गया है। यह कथाएं मुफ्त नहीं हो रही हैं। इसका हिसाब जिस दिन सार्वजनिक हो जाएगा, उस दिन धर्म के नाम पर चिढ़ हो जाएगी।

-9826667063

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