लालबाग पैलेस: बन नहीं रहा बर्बाद हो रहा है

स्मार्ट सिटी का यह कैसा काम..., 17 माह से नहीं हो रहा यहां किसी भी प्रकार का कार्य

इंदौर (धर्मेन्द्र सिंह चौहान)। लगभग 135 साल से इंदौर के गौरव का प्रतिक लालबाग पैलेस की सूरत और सीरत इन दिनों बदहाल हो रही है। स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत किए जा रहे विकास कार्यो ने इसकी सूरत ही बिगाड़ दी। पैलेस के चारों तरफ यहां हो रही खुदाई का मलबा इस तरह बिखरा पड़ा हैं कि यह पहली नजर में डंपिंग ग्राउंड नजर आने लगा है। यहां रोजाना आने वाले मार्निंग वाकरों ने बताया कि विकास कार्य के चलते बहुत से ऐतिहासिक वस्तुओं में तोड़-फोड़ कर अलग पटक दिया गया है। इसके मेहराब, मूर्तियाँ और लाइट के पोल टूट कर अलग पड़े हुए है। इधर नगर निगम इस पूरे मामले से अपना पल्ला झटक रही है उनका कहना है पुरातत्व विभाग ने पूरे काम का सत्यानाश कर दिया है। 11 करोड़ 30 लाख रुपए खर्च होने के बाद भी यहां काम दिखाई नहीं दे रहा है।
शहर का ऐतिहासिक लालबाग पैलेस जीर्णोद्वार के चलते इसके परिसर के हालात इतने खराब हो गए कि यहां आने वाले दर्शक इसकी हालात पर तरस खाकर सरकार को कोस रहे है। एक साल से अधिक समय में यहां का काम चल रहा है। लेकिन अब तक न तो यहां किसी प्रकार का विकास दिखाई दे रहा हैं और न ही सौंदर्यीकरण। चारों तरफ खुदाई का मलबा फैसला हुआ हैं। पानी निकासी के लिए बनाई जा रही स्टार्म वाटर लाइन के कारण यहां की आकर्षक विद्युत सज्जा के पोल जमीन पर धराशाई पड़े हुए है। जबकि गार्डन में लगी संगमरमर की बेशकिमती प्रतिमाओं पर गंदगी और प्रदुषण का असर साफ दिखाई देने लगा है। मूर्तियाँ काली पड़ रही हैं। पुरातत्व और पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण इस स्थल पर हर माह सैकड़ों पर्यटक आते है। उल्लेखनीय है कि लालबाग पैलेस वास्तुशिल्प का नायाब नमूना होने के साथ ही यहां की धरोहर मुगलकाल की याद दिलाती है। इंदौर की शान और वास्तुशिल्प का नायाब नमूना लालबाग दो विभागों के विवाद में बर्बाद हो रहा है। नगर निगम ने स्मार्ट सिटी के तहत यहां 11 करोड़ 30 लाख रुपए स्वीकृत किये थे और इसके टैंडर भी जारी हो चुके थे। कुछ समय तात्कालिन महापौर मालिनी गौड़ के कार्यकाल में काम शुरु हुए ही थे कि परिषद समाप्त हो गई स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के लिए अदिति गर्ग आईएएस यह कार्य देखने लगी उन्होंने कोई रुची नहीं ली और यहां पर ठेकेदार कंपनी को करोड़ों रुपए का भुगतान भी नहीं हो पाया इसके बाद लालबाग की दुर्दशा शुरु हो गई। कंपनी ने अपना सामान समेट लिया उनके कर्मचारी जा चुके है। नगर निगम के 11 करोड़ स्वाहा हो गया अब पिछले दिनों मुख्यमंत्री ने 1 करोड़ 60 लाख और देने का कहा है पर वे किसे दिये जाएंगे इसके बारे में अभी कोई जानकारी नहीं है।

बेशकिमती संगमरमर की मूर्तियाँ भी दरक रही है। जबकि महारानी विक्टोरिया के हाथों की उंगलियाँ टूट चुकी है। महल का प्रवेश द्वार बेहद सुंदर है जो लंदन से आया था। लाल बाग महल को भारत और इटली के कई अन्य चित्रों व मूर्तियां से सजा हुआ था। इस महल की दीवारों पर व छत पर नक्काशी बनी हुई थी। यहां पर लगे कांच और कारपेट बेलजियम से मंगाये गये थे। इन पर भी नक्काशी है। इनमे से भी कुछ टूट चुके हैं। कुछ चीजें रिकार्ड पर मौजूद नहीं है। पिछले फरवरी माह से यहां पर किसी प्रकार का कार्य नहीं किया जा रहा है जब भी कोई दौरा होता है उस दौरान नगर निगम के कर्मचारी ही यहां पर काम करने का अभिनय करते दिखते हैं।
आने वाले पर्यटक इसकी दुर्दशा पर सरकार और प्रशासन को कोसते देखे जा सकते हैंं। पैलेस के पास पहले बिना योजना सीमेंट की लंबी चौड़ी सड़क बना दी परंतु इसके बनने के बाद वर्षा के जल की निकासी बंद होने से बड़ी मात्रा में पानी पैलेस के अंदर जाने लगा जिससे भी भारी नुकसान पैलेस को हुआ था। अब इसी सीमेंट की सड़क को उखाड़ दिया गया है। उल्लेखनीय है कि लालबाग पैलेस को स्मार्ट सिटी योजना के तहत लिया गया है और इसे अंतराष्ट्रीय धरोहर भी घोषित किया गया है। इस अंतर्राष्ट्रीय धरोहर की दुर्दशा जिन्होंने नहीं देखी हो वे भी जाकर देख सकते हैं। पिछले साल फरवरी से यहां पर कोई कार्य नहीं चल रहा है। लालबाग पैलेस के अंदर का भी बहुत सारा बेशकिमती सामान बेतरतीब तरीके से खाली कमरों में भर दिया गया है। इनमें से भी कुछ को नुकसान होने की जानकारी है। वास्तुशिल्पियों का कहना है कि यहां लगी प्रतिमाएँ लाखों रुपए खर्च करने के बाद ही अब बनाई जा सकती है। दूसरी ओर यहां उनकी बर्बादी हो रही है। पैलेस के बाहार का कार्य स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में किया जा रहा हैं जबकि अंदर का कार्य विश्व धरोहर निधि से हो रहा है। लैंड स्केपिंग और प्लांटेशन का काम शुरु करने के लिए पैलेस के आस-पास की गई खुदाई से इसकी सूरत ही बिगाड़ कर रख दी है। पिछले दिनों आये प्रभारी मंत्री नरोत्तम मिश्रा को भी इस दुर्दशा से दूर रखा गया। पुरातत्व विभाग के अधिकारी का दावा है कि नगर निगम की करोड़ों रुपए के कार्य जो बताये गये हैं वह यहां जमीन पर कोई भी आकर देख ले। पुरातत्व विभाग के पास लालबाग पैलेस के अंदर का ही रखरखाव है। पैलेस अंतर्राष्ट्रीय धरोहर के रुप में भी पहचाना जाता है इसलिए विभाग अलग से यहां अंदर कार्य कर रहा है। बाहर के कार्यों में हो रहे नुकसान और बर्बादी के लिए नगर निगम के अधिकारी ही जवाबदार है।

लालबाग का इतिहास
71.63 एकड में पैसला ऐतिहासिक लालबाग पैलेस 1886 में शिवाजी होल्कर के राज्यकाल में बनाया गया हैं। 1926 में राजगद्दी त्यागने के बाद तुकोजीराव तृतीय 1978 आजीवन लालबाग में ही रहे। इनकी मृत्यु के बाद 1987 तक लालबाग राजकुमारी उषान्यास के पास रहा। इसके बाद देवी अहिल्याबाई शैक्षणिक न्यास के पास रहा । वर्ष 1988 में मध्य प्रदेश राज्य शासन द्वारा इसका अधिगृहण कर इसे बहुआयामी कलाकेन्द्र के रुप में स्थापित किया। 14 नवम्बर 1988 को नेहरुकला केन्द्र के रुप में इसका उदघाटन किया। लालबाग पैलेस 72 एकड़ जमीन में फैला है। इसमें से करीब चार एकड़ जमीन पर पैलेस बना है। 14 एकड़ जमीन पिछले हिस्से में है। इसमें से भी कुछ अरबन हाट को दी गई है। शेष 54 एकड़ जमीन पर गार्डन और खाली मैदान है। मुख्य द्वार से अंदर घुसते ही बहुत सी जमीन खाली पड़ी है।
ठेकेदार कंपनी गायब
लालबाग पैलेस का स्मार्ट सिटी के तहत काम करने वाली कंपनी को लंबे समय से नगर निगम द्वारा कोई भुगतान न मिल पाने के कारण कंपनी ने पिछले साल फरवरी से ही यहां के कार्यों से हाथ खींच लिया था। भुगतान बाकी होने के बाद पूरी धरोहर स्मार्ट सिटी योजना के तहत अब बर्बाद हो रही है। पिछले साल फरवरी से ही यहां पर विकास के नाम पर कोई कार्य नहीं चल रहा है।
120 से रह गए 40 ही
लालबाग पैलेस में पहले 120 कर्मचारी कार्य करते थे, अब हालात यह हैं कि यहां पर मात्र ह्यह्य40 ही कर्मचारी बाकी रह गए। दरअसल रिटायर्ट होने के बाद पैलेस में किसी भी प्रकार के कर्मचारियों की नियुक्ति नहीं की गई। जिससे यहां कार्य तो प्रभावित होता ही हैं साथ ही यहां की दुर्दशा का एक प्रमुख कारण यह भी बताया जा रहा है। तीन गुना कम हुए कर्मचारियों का बोझ बचे हुए कर्मचारियों पर आने से इनमें भी असंतोष देखा जा रहा है।
यह होना हैं कार्य
लालबाग पैलेस के बाहरी सौंदर्यीकरण के तहत किए जाने वाले नवीनीकरण के तहत बगीचा बनाना, फव्वारे, लगाना, पैलेस के सामने स़ड़क का निर्माण के साथ ही बारिश के पानी की निकासी के लिए वाटर र्स्टाम लाइन और ड्रेनेज लाइन का काम किया जाना था। इसके लिए मध्यप्रदेश शासन ने स्मार्ट सिटी योजना के तहत ११ करोड ३० लाख रुपए की स्वीकृति दी थी। वहीं पैलेस के अंदर धरोहर को संरक्षित करने के लिए अलग से बजट स्वीकृत किया गया है। इसमे छतों पर बनी पेटिंग के अलावा मार्बल की नक्काशी को भी संरक्षित करना है।
गाईड भी नहीं…-पैलेस में आने वाले पर्यटक टिकट लेने के बाद यहां वहां बगले झांकते रहते हैं, कारण यहां पर गाईड की व्यवस्था नहीं है। गाईड के न होने से पर्यटक एक के पीछे एक चले जाते हैं उन्हें जो समझ आता हैं बस वहीं देख पाते हैं यहां रखे गई ऐतिहासिक चीजों के महत्व क्या यह इन्हें बताने वाला कोई नहीं होता है। ऐसे में विभाग को पर्यटकों की यह हालात भी नहीं दिखाई देती है।

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