नोटरी पर बीवियां, रेट 10 हजार से शुरू, ‘री-सेलÓ में भी उपलब्ध, माल वापसी तक की गारंटी!

शिवपुरी (ब्यूरो)। मध्यप्रदेश के शिवपुुरी में एक नया खुलासा सामने आया है जिसमें नोटरी पर लिखा पढ़ी के बाद औसतें खरीदी-बेची जा रही हैं। उनके रेट 10 हजार से शुरू होकर लाखों तक पहुंचे हैं वहीं दलालों द्वारा माल वापसी की गारंटी भी दी जा रही है। यह धंधा इन दिनों क्षेत्र के ग्रामीण इलाकों में खूब फल फूल रहा है।

यहां बेचे खरीदे जाने वाली ज्यादातर लड़कियां उड़ीसा, बंगाल, झारखंड और छत्तीसगढ़ की बताई जाती है।बताया जाता है कि चौराहों पर दलाल पान चबाए, रुमाल डाले आपको आसामी से घूमते फिरते नजर आएंगे और इशारे-इशारे में ही वे ग्राहक ढूंढ लेते हैं। ब्याहता की तरह लगती ये औरतें खरीदकर लाई गई हैं।

गलियों में ढेर के ढेर एजेंट्स हैं। आप जरूरत बताइए, वे लड़की दिलवाएंगे। कीमत 10 हजार से लेकर कई लाख तक। पसंद न आने पर रीसेल की गुंजाइश भी. खरीदार किसी झंझट-मुसीबत में न फंस जाए, इसके लिए राजीनामे का करार भी. कुछ सालों पहले तक शिवपुरी में एक परंपरा हुआ करती थी- धड़ीचा।

इसमें पेपर पर लिखा-पढ़ी के साथ औरतें खरीदी-बेची या किराये पर ली जाती थीं. भाड़े पर लेने की मियाद कुछ महीनों से लेकर सालों तक हो सकती थी. प्रथा ऊपरी तौर पर बंद हो चुकी, लेकिन परदे की ओट में सबकुछ वही। पुराने जानकार इसे दधीचा, खरीचा, लड़ीचा जैसे कई नाम देते हैं. थोड़ा खोजने पर फॉर्मेट लेकर बैठे नोटरी बाबू भी मिलेंगे और ‘फ्रेश मौड़ीÓ दिलवाने वाले बिचौलिए भी।

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वे हाथ के हाथ आपको दो-चार फोटो दिखा देंगे। पसंद कीजिए और हफ्तेभर में लड़की आपकी। बस, उम्र, रंगरूप और ताजा-पुरानी के आधार पर कीमत बदल जाएगी। बताया जाता है कि वर्षों पहले भी इस तरह की महिलाओं की खरीद फरोख्त का मामला उजागर हुआ था। वर्षों बाद अब फिर यहां के दलाल सक्रिय हो गए हैं। Notary’s wives

अंदरुनी बीमारी की तरह फलती-फूलती इस परंपरा को टटोलने हम दिल्ली से निकले. आगरा-बॉम्बे नेशनल हाइवे होते हुए लगभग 8 घंटे में शिवपुरी पहुंच जाएंगे. पोहरी तहसील हमारा पड़ाव था, जहां करार पर लाई हुई लड़कियों और एजेंटों से हमारी मुलाकात होनी थी। कुछ पति भी टकराए, जिनकी औरतें उन्हें छोड़कर भाग चुकीं। उखड़े लहजे में वे कहते हैं- पैसे भी गए, मौड़ी (लड़की) भी। भाग जाएगी, अंदाजा होता तो बेचकर ‘लागतÓ ही निकाल लेते। Notary’s wives

लेकिन भागी क्यों?

क्या पता! हमारी बोली नहीं समझ पाती थी तो खींचकर दो-चार जमा दिए थे. बस, इसी पर तुनक गई.

चेहरे पर छोड़कर गई पत्नी की याद की कोई खरोंच नहीं. जैसे नया एसी बिगडऩे पर हम सर्विस सेंटर कॉल करते हैं, वैसे ही खरीदार, दलालों के पास शिकायत करते हुए. कम दाम पर नई मौड़ी दिलाने की मांग करते हुए. कुछ को औरत के साथ भागे हुए बच्चे चाहिए थे ताकि वंश चल सके.

लगभग ढाई सौ गांवों वाली तहसील पोहरी में हर हजार पुरुषों पर 874 महिलाएं हैं, यानी कुल 126 लड़कियां कम.

डिमांड और सप्लाई के बीच इसी फासले को पाट रहे हैं एजेंट. वे गरीब राज्यों से लड़कियां लाते और यहां बेचते हैं. रकम का बड़ा हिस्सा लड़की के परिवार या दूसरे स्टेट के बिचौलिए को मिलेगा, जबकि बचा हुआ लोकल दलाल के पास चला जाएगा. कभी-कभार माला पहनाने की रस्म होती है, कभी वो भी नहीं. लड़की आएगी और पुराने नौकर की तरह घर के सारे काम संभाल लेगी. बस, फर्क इतना है कि वो भरोसेमंद कभी नहीं हो पाती.

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