Political News: इंदौर के विधायकों को मंत्री योग्य नहीं माना गया
जब मौका मिला तो आपसी खींचतान के चलते शहर खाली हाथ रहा
इंदौर। मध्यप्रदेश के सबसे बड़े कारोबारी शहर के साथ कुछ ऐसा अन्याय हो रहा है कि आपसी खींचतान के कारण इंदौर शहर की पांच सीटों पर जीतने वाले मंत्री बनने की स्थिति में नहीं आ पाते हैं। चाहे पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह का कार्यकाल हो या फिर मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के सपनों के शहर का मामला हो। सपनों में कोई व्यवधान नहीं चाहता है और इसीलिए इंदौर शहर को बीस सालों तक कोई मंत्री नहीं मिला।
केवल एक बार महेंद्र हार्डिया आखरी बार इंदौर से मंत्री बन पाये थे। क्षेत्र क्रमांक १ के विधायक रहे सुदर्शन गुप्ता तो इंदौर से मंत्री बनने के लिए पिछली बार लवाजमे के साथ रवाना हो गये थे पर आधे रास्ते से ही उन्हें वापस लौटना पड़ा। क्षेत्र क्रमांक २ के विधायक रमेश मेंदोला सर्वाधिक मतों से जीतने के बाद भी मंत्री बनने योग्य नहीं पाये गये। जबकि ग्रामीण क्षेत्र से इंदौर की झोली भरती रही। दो दिन पहले हुए मंत्रीमंडल विस्तार में भी इंदौर खाली हाथ ही रहा। इंदौर में विधानसभा की पांच सीटें शहरी और तीन सीटें ग्रामीण क्षेत्र की आती है।
राजनीतिक सूत्रों के मुताबिक अब अगले चुनाव तक इंदौर शहर को इंतजार करना पड़ेगा। प्रदेश के सबसे बड़े शहर से 10 साल से कोई मंत्री नहीं है। राजनीतिक हलकों में यह बात उठने लगी है कि प्रदेश का सबसे बड़ा शहर और सर्वाधिक राजस्व देने वाले शहर को मंत्री कब मिलेगा? तुलसी सिलावट और उषा ठाकुर इंदौर के ग्रामीण इलाकों से मंत्री बनाए गए हैं। ग्रामीण क्षेत्र से विधायक होने से दोनों का मंत्री के नाते शहर में सीधा दखल नहीं रहा है। हाल ही में नाइट कल्चर पर हुए बवाल के बीच बुलाई गई बैठक से भी दोनों को दूर रखा गया। स्थिति यह रही कि यह बैठक भी राष्ट्रीय महासचिव के नेतृत्व में बुलानी पड़ी जिसमे सांसद और महापौर शामिल हुए।
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इंदौर शहर के विधायक रमेश मेंदोला प्रदेश में सर्वाधिक मतों से जीतने वाले विधायक हैं तो महेंद्र हार्डिया लगातार 4 बार से चुनाव जीतते आ रहे हैं। दोनों का दावा पिछले उपचुनाव के बाद था लेकिन आपसी खींचतान में इंदौर को होल्ड पर कर दिया गया था। इनके अलावा पूर्व महापौर और चार नंबर सीट से लगातार तीन बार विधायक मालिनी लक्ष्मणसिंह गौड़ का भी नाम है। जो स्वच्छता का तमगा इंदौर को दिला चुकी है। इसके बाद भी मंत्री योग्य नहीं रही। आश्चर्य की बात यह है कि भोपाल से अनुभव के मामले में इंदौर के विधायकों से कमतर रहने के बाद भी विश्वास सारंग मंत्री बन गये। वहीं ग्वालियर शहर से प्रद्युम्र सिंह तोमर भी मंत्री मंडल में आ गये।
एक समय इंदौर से थे दो-दो मंत्री
इंदौर शहर में 2008 के पहले तक दो-दो कैबिनेट मंत्री हुआ करते थे। एक कैलाश विजयवर्गीय तो दूसरे लक्ष्मण सिंह गौड़। कैलाश विजयर्गीय पहली बार 2003 में तो वहीं लक्ष्मण सिंह गौड़ को 2007 में मंत्री बनाया गया था। वहीं 2008 का चुनाव कैलाश विजयवर्गीय ने महू से लड़ा था जिसके बाद से वह इंदौर ग्रामिण के कोटे से मंत्रिमंडल में शामिल हुए।
कांग्रेस सरकार ने भी इंदौर से किसी को नहीं बनाया था मंत्री
2018 में जब प्रदेश में कमलनाथ की सरकार आई तब भी इंदौर शहर खाली हाथ रहा। इस दौरान भी कमलनाथ ने अपने मंत्रिमंडल में इंदौर ग्रामीण सीट राऊ के विधायक जीतू पटवारी और सांवेर के विधायक तुलसी सिलावट को मंत्री बनाकर मंत्रिमंडल में जगह दी थी। 2020 में सरकार कमलनाथ सरकार गिरने के बाद जब शिवराज सरकार गठन हुआ तब भी ऐसा ही हुआ। दिग्विजयसिंह के दस साल के कार्यकाल में भी इंदौर से एक भी मंत्री नहीं रहा।
2016 में मंत्री बनने का मौका मिला तो आपसी लड़ाई में इंदौर हो गया सरकार से बाहर
2018 चुनाव के पहले 2016 में शिवराज मंत्रिमंडल का विस्तार हो रहा था तब भी इंदौर से विधायक महेंद्र हार्डिया, सुदर्शन गुप्ता और रमेश मेंदोला को मंत्री बनाने के लिए इन विधायकों के नाम मजबूती के साथ प्रदेश और केंद्रीय संगठन तक बढ़ाए गए थे। दावेदारों की सूची जब दिल्ली पहुंची तो इंदौर को लेकर ही सबसे ज्यादा खींचतान मची। दिल्ली में मंथन शुरू हुआ तो पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने सुदर्शन गुप्ता का सिंगल नाम आगे बढ़ाया। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने रमेश मेंदोला को मंत्रिमंडल में शामिल करने पर जोर दिया। खींचतान के चलते दोनों ही बाहर हो गये और महेंद्र हार्डिया मंत्री बन गये जबकि नरेंद्रसिंह तोमर हार्डिया के नाम पर सहमत नहीं थे।