दिग्विजयसिंह 90 करोड़ में एनटीसी को मिलों की जमीनें पहले ही दे चुके थे

कलेक्टर का फैसला कई पेंचों से भरा, एनटीसी स्वदेशी और एनटीसी हाउस पहले ही बेच चुका है

Indore's Malwa and Kalyan mill's land lease canceled
Indore’s Malwa and Kalyan mill’s land lease canceled
Indore's Malwa and Kalyan mill's land lease canceled
Indore’s Malwa and Kalyan mill’s land lease canceled

इंदौर। कल जिला प्रशासन द्वारा इंदौर की मालवा और कल्याण मिल की भूमि लीज निरस्त करने के बाद यह जमीन शासन के नाम दर्ज करने के आदेश दे दिए है। कई पेंचों से भरी इन एनटीसी की तीन मिलों की जमीनें आसानी से शासन के पास भी नहीं जा पाएगी। जिला कलेक्टर ने भी शायद पूर्ववर्ती सरकार के निर्णय को नहीं देखा है।

यह जमीन तत्कालीन कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में मुख्यमंत्री रहे दिग्विजयसिंह ने केंद्र में अटलबिहारी वाजपेयी की सरकार के समय 90 करोड रुपए जो मजदूरों के मिलों को देने थे उसके बदले में कल्याण और मालवा मिल की जमीनें केंद्र शासन मेें एनटीसी को सौंप दी थी। बकायदा इसे लेकर कागजी समझौता भी किया गया था। जिला कलेक्टर द्वारा निरस्त की गई लीज केवल एक ही आधार पर निरस्त की गई है कि जमीन का एनटीसी कोई उपयोग नहीं कर पा रही है। दूसरी ओर सरकार द्वारा किए गए समझौते के बाद स्वदेशी मिल की जमीन और एनटीसी हाउस जो होटल लेंटर्न के सामने था इसे बेच दिया। उस समय यह सबसे महंगा सौदा कहलाता है।

एनटीसी हाउस की जमीन कल्पतरु ने 100 करोड़ में खरीदी थी। स्वदेशी मिल की जमीन चेन्नई की रियल ईस्टेट कंपनी को बेची गई है। उन्होंने आज तक कोई उपयोग नहीं किया । 

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कल बरसों पहले बंद हुई एनसीटी की मिलों में से बची हुई कल्याण मिल और मालवा मिल की जमीनों की लीज निरस्त कर दी गई। इस प्रकार कुल 92 एकड़ जमीन वापस शासन ने अपने खाते में कलेक्टर इलैया राजा टी के आदेश के बाद ले ली। इस जमीन की शासकीय गाइड लाइन से आज कीमत 14 सौ करोड रुपए से ज्यादा हो रही है। हालांकि दोनों मिलों की जमीनें कलेक्टर के फैसले के बाद भी शासन को नही मिल पाई।

उल्लेखनीय है कि वर्ष 1973 में मिलों के अधिग्रहण के साथ ही इंदिरा गांधी के कार्यकाल में यह मिलें एनटीसी (नेशनल टेक्सटाइल कार्पोरेशन) के हाथों में चली गई। हालांकि जमीन पर राज्य शासन का ही अधिकार था। परन्तु जब मिले बंद हुई तो इन मिलों पर बकाया देनदारी 90 करोड से ज्यादा की थी।

उस वक्त तत्तकालीन मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह ने अटलबिहारी वाजपेयी से आग्रह किया कि वे इन 3 मिलों की जमीनें केंद्र सरकार के अधीन ले ले और यह देनदारी केंद्र सरकार ही अपने स्तर पर समाप्त करें। इसके बाद कपड़ा मंत्री रहे काशीराम राणा ने इन मिलों की जमीनें एनटीसी में लेते हुए यह देनदारी समाप्त की। Indore’s Malwa and Kalyan mill’s land lease canceled

इसके बाद उन्होंने यानि एनटीसी ने स्वदेशी मिल की जमीन चेन्नई की रियल इस्टेट कंपनी को बेच दी। एक साथ ही एनटीसी हाउस को भी 100 करोड़ में बेचा। हालांकि स्वदेशी मिल की जमीन रेलवे को देने के लिए आंदोलन भी हुए। परन्तु बाद में कुछ भी नहीं हुआ। जमीन आज भी चेन्नई की रियल ईस्टेट के पास ही है। जबकि एनटीसी हाउस पर एक विशाल बहुमंजिला बन चुका है। दूसरी ओर एनटीसी की अन्य मिलें यानि ताप्ती मिल बुरहानपुर जो अभी भी कागजों पर काम कर रही है तो वही उज्जैन की हीरा मिल का राज्य शासन ने अधिग्रहण कर लिया है।

परन्तु यहां पर बड़ी तादाद में कब्जे हो चुके हैं। इधर मालवा मिल की जमीन में कई पेंच है। मिल की जमीन पर कच्ची कालोनी, पक्की कालोनी के अलावा मिल के अंदर बने प्रांगण में मकानों पर भी कब्जे है। उल्लेखनीय है कि तत्कालीन कलेक्टर मनीषसिंह के कार्यकाल में इन जमीनों की रिपोर्ट बनवाई थी।

शासन ने एनटीसी को 2003 और 2007 में भी जमीनें बेचने की मंजूरी दी थी, लेकिन यह जमीनें नहीं बिक सकी। इसका मुख्य कारण जमीनों का उपयोग औद्योगिक है। मालवा मिल की जमीन में से इंदौर विकास प्राधिकरण को कन्वेंशन सेंटर के लिए 25 एकड़ जमीन लीज पर दी गई है। वहीं एनटीसी की 7.67 एकड़ जमीन परिवहन विभाग में भी दी जा चुकी है। मालवा मिल की 45 एकड़ जमीन अब शासन के पास वापस लौटेगी। इस मामले में एनटीसी का पक्ष अभी नहीं आया है।

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