गुस्ताखी माफ़- ताई की मांद में पत्थर कौन फेंककर आया …
सूटकेस बांधकर रखना...
ताई की मांद में पत्थर कौन फेंककर आया …
इ स समय शहर का आम नागरिक यह नहीं समझा पा रहा है कि जो वह इस समय शहर में जो देख रहा है, वह विकास के नाम पर भूखों के खाने की व्यवस्था हो रही है या अधिकारियों के ब्रह्म भोज की। विकास की रोशनी आंखों पर इस कदर पड़ रही है कि चौंधियाया शहर का नागरिक जब वापस अपनी आंखें खोलेगा तो उसे चार्तुदिक अंधेरा छाया दिखाई देगा।
स्मार्ट सिटी और विकास के नाम पर तोड़-फोड़ हो रही हो या पुराने अधिकारियों के बेतुके फैसले जो इस शहर को भोगना पड़ रहे हैं। ऐसे में शहर के नागरिक और भाजपा कार्यकर्ता यह मानने लगे है कि अब किसी की सुनवाई होना संभव नहीं हो रहा है।
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