patakha licence: पटाखा दुकान लायसेंस बने मुसीबत मंत्री से पार्षदों तक ने मांगी दुकानें
सांसद ने 40 तो एक पार्षद ने लगाए 18 आवेदन, प्रशासनिक अधिकारी भी कतार में
(पटाखा दुकान लायसेंस) इंदौर। पटाखा दुकानों के नए लायसेंस के आवेदन प्रशासन के लिए मुसीबत बनते जा रहे हैं। मंत्री से लेकर पार्षद तक समर्थकों के लिए दुकानें मांग रहे हैं। लायसेंस को लेकर हालत यह है कि एक पार्षद ने 18 आवेदन लगाए हैं। सांसद के यहां सेे भी 40 आवेदन पहुंचने की बात कही जा रही है। विधायकों के हस्ताक्षर से भी आवेदन पहुंच रहे हैं। लगातार आवेदनों की संख्या बढ़ने से प्रशासन ने निर्णय लिया है कि वह रिन्यू लायसेंस में पारदर्शिता रखने लाटरी पद्धति का सहारा ले।
अब तक 200 से अधिक आवेदन पहुंच चुके हैं और यह क्रम लगातार जारी है। 20 अक्टूबर को दुकान खोलने की अनुमति दी जाएगी। लायसेंस के लिए हर साल कई आवेदन आते हैं। प्रशासनिक अधिकारी, राजनेता ही नहीं, अपितु पुलिस के अधिकारी भी अपनों के लिए लायसेंस मांगने में लगे हुए हैं। शहर में पटाखा दुकानों के लायसेंस रिन्यू कराने के आवेदन आज शाम 4 बजे तक कलेक्टोरेट के कक्ष क्रमांक 201 में लिए जा रहे हैं।
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आज आवेदन लेने का अंतिम दिन है। इसके बाद 20 अक्टूबर को आवेदकों को दुकाने लगाने की अनुमति मिल जाएगी। पटाखा दुकानों से अधिक कमाई होने से लायसेंस को लेकर मारामारी चलती रहती है। कुछ लोग तो सालभर पहले से आवेदन लगाकर जोड़तोड़ कर लायसेंस हासिल कर लेते हैं। सूत्रों की मानें तो कलेक्टर आफिस के कुछ अधिकारी दुकानों के वितरण के बाद अगले साल के लिए आवेदन लेते हैं। निर्धारित पैसा लेकर ये अधिकारी खुद लायसेंस बनवाकर दे रहे हैं।
पारदर्शिता नहीं रखते
पटाखा लायसेंस की दुकानों को लेकर प्रशासन ने कभी पारदर्शिता नहीं रखी। लायसेंस धारक दुकान पर कम बैठता है। वह दुकान के लायसेंस लेकर उसे महंगी कीमत में तीन दिन के लिए किराए पर देता है। किराए के रुप में 2 से 10 हजार रुपए लिए जाते हैं। हालत यह है कि प्रशासन ने एक ही परिवार में 4 से 7 लायसेंस तक बनाकर दिए हैं।
नहीं करते जांच
पटाखा दुकानें खुलने के बाद प्रशासनिक अधिकारियों ने कभी यह सुध नहीं ली कि जिसके नाम से लायसेंस है, वह दुकान पर बैठता है या नहीं। यही कारण है कि लायसेंस को लेकर लगातार नए आवेदन आते हैं।
500 से अधिक दुकानें
शहर में पटाखा की छोटी-बड़ी 500 से अधिक दुकानें लगती है। इन दुकानों को तैयार करने ठेका दिया जाता है। ठेकेदार मनमाना शुल्क वसूलकर दुकान तैयार करते हैं। एक दुकान तैयार करने में लायसेंसी को 15 से 20 हजार रुपए अतिरिक्त लगते हैं। यही कारण है कि वह राशि बचाने के लिए लायसेंस को किराए पर देता है।
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