राजनीति करने का हुनर यदि सीखना हो तो दादा दयालू से सीखना चाहिए। तमाम भीड़ के बीच भी वे गली में एक-एक, दो-दो रन निकालकर कब सेंचुरी ठोक देते हैं, ना खेलने वाले को मालूम पड़ता है और ना देखने वाले को। अब ऐसा मामला मध्यप्रदेश की और पता नहीं लोग कहते हैं देश की सबसे बड़ी सहकारी संस्था नंदानगर का अपना जलवा है और इससे ज्यादा दादा का है। चौघड़िया देखकर दादा को यहां गणेशजी की तरह स्थापित किया गया था। अब दादा यहां ऐसे स्थापित हो गए हैं कि इस संस्था के चुनाव कब होते हैं, ये पूरे गांव को पता नहीं लगता। मजेदार बात यह है कि जिन्होंने वोट डाले, उन्हें भी मालूम नहीं रहता कि वोट डल गए और इससे ज्यादा मजेदार बात यह है कि जो चुनाव में खड़े हुए, उनको भी जीतने के बाद मालूम पड़ता है कि लोगों ने उन्हें वोट दिए हैं। हालांकि यह भी बात सही है कि दादा हर दिन वहां दर्शन देते हैं, परंतु उनका सुदर्शन इतना तेज रहता है कि एक नंबर तक सुदर्शन निपट जाते हैं। जो भी हो, मानना पड़ेगा, दादा तो बस दादा ही हैं।
पूरी कांग्रेस हिला डाली…
पिछले दिनों कांग्रेस में भर्ती हुए एक युवा नेता शहर भर में कांग्रेस के कार्यक्रमों में कुलांचे भर-भरकर कूद रहे थे। फिर इस बीच गांधी परिवार पर ईडी की कार्रवाई के बाद उनके शरीर में कांग्रेस का खून जाग गया और उन्होंने ईडी कार्यालय पर कालिख पोतने का ऐलान कर दिया। अपने साथ कलदार पट्ठों को लेकर कार्यालय पहुंच गए, परंतु इस समय भाजपा की राजनीति में अपनी राजनीति जो हिचकोले लेकर चला रहे हैं, वो इस समय यहां मौजूद नहीं थे। अब क्या था, भिया ने कालिख उठाकर ईडी के बोर्ड पर फेंक मारी और जलवा-पूजन के साथ घर रवाना हुए। इधर जिला प्रशासन ने आगे की कार्रवाई करते हुए देशद्रोह का मुकदमा दर्ज करने के साथ भिया का मकान तोड़ने का नोटिस जारी कर दिया। अब आधी कांग्रेस नोटिस के बाद हिल गई है। लगा कि यदि मकान टूट गया तो अगली बार कोई नहीं आएगा। हालांकि काम तो कोई कांग्रेस नेता नहीं आया, भिया के पिताजी खुद अच्छे वकील हैं और उन्होंने दस्तावेज के साथ नगर निगम को आए हुए नोटिस का जवाब दे दिया। अब यह मामला ठंडे बस्ते में है।
कथा, तिरथ, भंडारे काम नहीं आए…
पिछले दिनों केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी इंदौर में 2300 करोड़ की सौगात दे गए। इसमें कई पुलों की सौगात भी बिना मांगे ही मिल गई है। भाजपा ने इसे अपने खाते में जमकर लिखवाया तो दूसरी ओर क्षेत्र क्रमांक एक के विधायक संजू बाबू ने भी अपने यहां के एक पुल को लेकर धन्यवाद दिया। हालांकि वे चुनाव के पहले शहर में पांच नए पुल बनाने की सौगात अपने पैसों से देने जा रहे थे। ये तो अच्छा हुआ कि सब अच्छा होता है, वरना पांच पुलों का हिसाब-किताब कौन रखता। वैसे भी शिवराज सरकार में मारे पठान और बिना बात के खुले पिंजारा वाली कहावत पूरी हो रही है। इस मामले में भाजपा के ही कई नेताओं का कहना है कि यदि उन्हें धरम-धंधे, कथा, भंडारे से फुर्सत मिले तो फिर विकास की बात हो। यदि उनके पुण्यों में कुछ भी लाभ होता तो एक नंबर में इतना बड़ा गड्ढा नहीं होता, यानी शहर को विकास का ऐसा मॉडल चाहिए, जो कथा-रामायण और भोजन-भंडारे से ऊपर हो। समझ गए तो समझो और जो न समझे….! -9826667063