कमजोर संगठन के भरोसे डूबी संजय की नैया, अध्यक्ष खुद ही नहीं बचा पाए अपने उम्मीदवार, पट्ठों के टिकट के बाद बड़े नेता नदारद रहे
छोटे यादव, गोलू अग्निहोत्री नहीं रख पाए जीत कायम...
इंदौर। हाल ही में राजस्थान के उदयपुर से चिंतन शिविर से लौटी कांग्रेस ने नवसंकल्प के साथ एक व्यक्ति एक पद के सिद्धांत को लागू करते हुए अपनी रणनीति तय की थी। वहीं उसके उलट मध्यप्रदेश में कांग्रेस के मुखिया कमल नाथ ने इस सिद्धांत को दरकिनार करते हुए सर्वे के आधार पर पार्टी लाइन से हटते हुए प्रदेश से तीन विधायकों को नगर निगम चुनाव में महापौर प्रत्याशी के रूप में उतारा अपने जेबी सर्वे (जेब मे पड़ी सर्वे पर्ची) के आधार पर एक अदभुत प्रयास किया और परिणाम सामने हैं।
तीनो विधायकों को इंदौर, उज्जैन, सतना से हार का सामना करना पड़ा। नगर निगम चुनाव के इस लिटमस टेस्ट में इन तीनों विधायकों के राजनीतिक भविष्य पर प्रशन चिन्ह लग गया है। राऊ की करारी हार ने जीतू पटवारी की पकड़ पर भी प्रश्न चिन्ह लगा दिया है। वहीं जिला स्तर पर कमजोर संगठन और नेताओं की हठधर्मिता भी इन महापौर प्रत्याशियों के लिए मुसीबत बन गई। इंदौर की बात करें तो पिछले चार दशक से पार्षद रहे कांग्रेस के दिग्गज नेता छोटे यादव और गोलू अग्निहोत्री भी अपने विजयी तिलस्म को कायम नहीं रख सके। छोटे यादव के सामने जहां कांग्रेस के बागी उम्मीदवार संतोष यादव ने खेल बिगाड़ दिया तो वहीं गोलू अग्निहोत्री के वार्ड में सुदर्शन गुप्ता ने इसे अपनी प्रतिष्ठा से जोड़कर वार्ड के समीकरण भाजपा के पक्ष में कर दिए और गोलू अकेले पड़ गए। वार्ड 18 से कांग्रेस के पूर्व पार्षद भूपेंद्र चौहान भी 915 वोटों से चुनाव हार गए। यहां तुलसी सिलावट के समर्थक विजय परमार ने उन्हें शिकस्त दी। चौहान ने यहां पुलिस प्रशासन और निर्वाचन अधिकारियों पर पक्षपात का आरोप लगाया है। वे बार-बार शहर अध्यक्ष से मदद की गुहार लगाते रहे परंतु उन्हें भी अपने दम पर ही प्रशासन से लड़ना पड़ा।
कांग्रेस के नेताओं ने टिकटों की लड़ाई में अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर अपने पट्ठों को टिकट दिलवाए पर चुनाव के मैदान में उन्हें लड़ने के लिए अकेला छोड़ दिया। ऐसे में सवाल कांग्रेस के कमजोर संगठन के खिलाफ उठना भी लाजमी है। शहर कांग्रेस अध्यक्ष ने कई वार्डों में सीधा हस्तक्षेप करते हुए अपने पसंद के उम्मीदवार तय करवाए, जो भाजपा के सामने टिक भी नहीं पाए। वहीं उन वार्डो से महापौर प्रत्याशी को भारी नुकसान हुआ। खुद के गृह वार्ड 55 में क्षमा मुकेश जैन का टिकट काट कर अपने खास समर्थक नीलेश शैलू सेन को उम्मीदवार बनाया जो भाजपा प्रत्याशी से 2286 मत से हार गए। कांग्रेस से बागी होकर निर्दलीय चुनाव लड़ी क्षमा मुकेश जैन 1199 मत लेकर तीसरे नम्बर पर रही। यहां विनय बाकलीवाल अपने खुद के बूथ के साथ जैन बाहुल्य इलाकों से हारे। जबकि इस बार कांग्रेस ने भाजपा के बनिस्बत बड़ी संख्या में जैन समाज से टिकट दिए। उसके बाद भी पार्षद और महापौर प्रत्याशी को इसका कोई लाभ मिला।
पिछली बार नगर निगम में कांग्रेस के 14 पार्षदों के साथ 3 निर्दलीयों का समर्थन था। इस बार कांग्रेस के 19 पार्षद जीते हंै तो वहीं वार्ड 2 से कांग्रेस के बागी उम्मीदवार रफीक खान निर्दलीय चुनाव जीत कर आए हंै। टिकट वितरण के बाद से उपजा विरोध अब परिणाम आने के बाद और मुखर हो गया है। कांग्रेस के कार्यकर्ता सोशल मीडिया पर शहर कांग्रेस अध्यक्ष विनय बाकलीवाल पर इस हार का ठीकरा फोड़ते हुए इस्तीफा मांग रहे हैं। वहीं टिकटों में अपने समर्थकों को चुनाव लड़वाए जाने के खिलाफ भी खुलकर बोल रहे हैं।
राऊ और एक नम्बर विधानसभा से कांग्रेस को लगा तगड़ा झटका
महापौर प्रत्याशी संजय शुक्ला को अपनी ही विधानसभा से हार का मुंह देखना पड़ा। कमलेश खंडेलवाल को नजरअंदाज कर भाजपा को हल्के में लेना कांग्रेस को भारी पड़ा तो वहीं राऊ विधानसभा से कांग्रेस के दिग्गज नेता जीतू पटवारी के होने के बाद भी कांग्रेस को बड़ी हार का सामना करना पड़ा। अब प्रशन यह उठता है कि जिस तरह से कांग्रेस की सरकार जाने के बाद से जीतू पटवारी को प्रदेश और शहर के नेताओं ने हाशिए पर डाल दिया था। यह इसका परिणाम है या फिर जनता ने पूरी तरह से पटवारी की जनसेवा के प्रति नाराजगी व्यक्त की है। इन दो विधानसभा की हार का आत्ममंथन दोनों विधायकों को करना पड़ेगा।
पूरा चुनाव संजय ने लड़ा, कांग्रेस का कोई नेता नहीं आया साथ
चुनाव की घोषणा से लेकर मतगणना तक महापौर प्रत्याशी संजय शुक्ला को अपने दम पर ही चुनाव लड़ना पड़ा। कांग्रेस के कई दिग्गज नेता नहंीं आए। चुनाव प्रचार में कमलनाथ भी नामांकन के समय मुंह दिखाई करके चले गए। वहीं इंदौरी नेताओं ने भी सिर्फ जनसम्पर्क में मुंह दिखाई कर इतिश्री कर ली। शहर कांग्रेस ने भी वार्डों में प्रभारी नियुक्त नहीं किए तो वहीं डैमेज कंट्रोल के लिए बनाई समिति तीन और पांच नम्बर विधानसभा में नहीं निभा पाई अपनी भूमिका। संजय अपनी टीम और समर्थकों के बल पर ही पूरा चुनाव लड़ पाए।