राज्य कर्ज के लिए पार्क, अस्पताल, कलेक्टर कार्यालय और मिनिकोर्ट गिरवी रख रहे हैं
वित्त सचिवों की बैठक में मिली जानकारी से मंत्रालय में हड़कंप
नई दिल्ली (ब्यूरो)। राज्यों द्वारा उठाए जा रहे कर्ज अब केन्द्र सरकार के लिए भी बड़ी मुसीबत बनते जा रहे हैं। रिजर्व बैंक ने केन्द्र सरकार को ऐसे कर्जों के बारे में सूचित किया है जो राज्य सरकारें अपने यहां के कलेक्टर कार्यालय, पार्क, अस्पताल, मिनिकोर्ट गिरवी रखकर वर्जित तरीके से उठाते चले जा रहे हैं। यह वे कर्ज हैं जिनका बजट में कोई जिक्र नहीं हो रहा है। इन्हें ऑफ बारोइंग कर्ज माना जाता है। रिजर्व बैंक के पत्र के अनुसार मध्यप्रदेश सहित 10 राज्य अपने कर्ज की सीमा को पार कर चुके हैं। पांच राज्य अब खतरनाक स्तर पर कर्जदार हो गए हैं। राज्य सरकारें अपनी जरूरतें पूरा करने के लिए तेजी से सरकारी संपत्ति गिरवी रखती जा रही हैं। दूसरी ओर राज्यों पर बिजली कंपनियों का बकाया 1 लाख करोड़ से ज्यादा और बड़ी मुसीबत खड़ी कर रहा है। राज्य सरकारें केन्द्र सरकार की मुफ्त गेहूं, चावल योजना की तरह मुफ्त बिजली बांटकर और वित्तीय संतुलन बिगाड़ रही है।
पिछले दिनों हिमाचल के धर्मशाला में हुई राज्यों के वित्त सचिवों की बैठक में केन्द्र के अधिकारियों को यह जानकारी वित्त सचिवों द्वारा दी गई। रिजर्व बैंक द्वारा 10 राज्य सरकारों के कर्ज उठाने को लेकर बैंकों को लिखे गए पत्र का हवाला भी यहां दिया गया, जिसमें रिजर्व बैंक ने बैंकों को चेताया है कि वे इन राज्य सरकारों को कर्ज देने से पहले पूरी वित्तीय स्थिति समझ लें। यानी आरबीआई ने भी इस मामले में सतर्क रहने को कहा है। दूसरी ओर राज्यों के कर्ज अब केन्द्र सरकार के लिए नई मुसीबत बनते जा रहे हैं। उल्लेखनीय है कि भारत सरकार और राज्यों पर कर्ज यदि जोड़ लिया जाए तो 200 लाख करोड़ रुपए के ऊपर पहुंच जाएगा, जो खतरे के निशान से ऊपर जा चुका है। यह जीडीपी के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है। राज्यों ने अपने यहां नए कर्ज उठाने के लिए अस्पताल, पार्क, मिनि कोर्ट, कलेक्टर कार्यालय तक गिरवी रखना शुरू कर दिया है।
वित्त सचिवों द्वारा दी गई जानकारी में यह बताया गया है कि तेलांगाना, आंध्रप्रदेश, केरल, उत्तर प्रदेश, सिक्किम और मध्यप्रदेश अब वर्जित तरीके से सामान्य खजाने से बाहर निकलकर अलग से यह कर्ज उठा रहे हैं, जिन कर्जों का बजट में कोई जिक्र नहीं है। मध्यप्रदेश सरकार द्वारा उठाए जा रहे ऑफ बारोइंग कर्ज ने रिजर्व बैंक को भी परेशान कर रखा है। उल्लेखनीय है कि जहां इस साल केन्द्र सरकार को अपना कामकाज चलाने के लिए 11 लाख करोड़ रुपए के कर्ज लेना है तो राज्य सरकारों को अपने नियमित खर्च के लिए चार लाख करोड़ से ज्यादा के कर्ज लगभग उठाने होंगे। मध्यप्रदेश पर पहले से ही 3 लाख करोड़ से ज्यादा का कर्ज हो चुका है। वित्तीय संस्थाएं अब राज्यों को महंगे ब्याज पर कर्ज देने का एलान कर चुकी है। मप्र को हर सैकंड 53 हजार रुपए ब्याज चुकाना पड़ रहा है।
तीन माह में ही राज्य उठाएंगे 2 लाख करोड़ के कर्ज – रिजर्व बैंक
भारतीय रिजर्व बैंक ने 2 जुलाई को जारी रिपोर्ट में बताया कि कर्ज में डूबे ये राज्य अगले तीन महीने जुलाई, अगस्त, सितंबर में ही 2.12 लाख करोड़ से ज्यादा का कर्ज लेंगे, जिसमें जुलाई में 62640 करोड़, अगस्त में 81582 करोड़ तथा सितंबर माह में 67.330 करोड़ रुपए तक का कर्ज जुटाने की योजना है। आरबीआई गर्वनर ने राज्यों के वित्त सचिवों की बैठक में कहा कि भारतीय राज्यों को विकसित मैक्रोइकोनॉमिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए एक विवेकपूर्व कर्ज रणनीति और कुशल नकद प्रबंधन अपनाने की जरूरत है।