मुंबई (ब्यूरो)। रिजर्व बैंक के इस बार के मासिक बुलेटीन में राज्यों का ब्यौरा दिया गया है, जिसमें अपनी तमाम बैंकों को चेताया गया है कि वे 10 राज्यों को कर्ज देने से बचें। यह राज्य कर्ज के भयावह जाल में उलझ रहे हैं। पांच राज्य पर इतना ज्यादा कर्ज हो चुका है कि उनके कुल राजस्व का 21 प्रतिशत ब्याज में ही जा रहा है। शेष पांच राज्य भी खतरे के निशान को पार कर चुके हैं। इन राज्यों की देनदारी आने वाले समय में अत्यधिक बढ़ जाएगी। पुराने कर्ज की किस्तें चुकाने के लिए इन्हें लगातार महंगे कर्ज उठाने होंगे। यह स्थिति देश के आधे भारत की बन गई है।
राज्यों पर भारी कर्ज का बोझ अब सीधे नागरिकों पर डालने को लेकर राज्य मजबूर होंगे। रिजर्व बैंक की ताजा बुलेटिन ने अपनी बैंकों को सतर्क कर दिया है। वे अब कर्ज देने से बचें या पूरे ब्यौरे के बाद कर्ज दें। इन राज्यों का वित्तीय संतुलन तेजी से बिगड़ रहा है। इसके पीछे राजकोषीय घाटा और राज्यों को कुप्रबंधन दोषी है। जिन राज्यों की हालत कर्ज से बेहद दयनीय हो चुकी है उनमें बिहार, केरल, पश्चिम बंगाल, राजस्थान और पंजाब हैं। यहां पर खतरे का लाल बल्ब जल रहा है। दूसरी ओर राज्य सरकारें भारी कर्ज के बावजूद भी अपने खर्चों में कटौती नहीं कर रही हैं। कई राज्यों में मुफ्त बिजली सहित कई सुविधाएं सरकार को अब भारी पड़ने वाली है। वहीं पांच और राज्य मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, आंध्र प्रदेश और झारखंड भी कर्ज के जाल में उलझने की कगार पर पहुंच गए हैं।
इन राज्यों को कर्ज चुकाने के लिए भी नए कर्ज लगातार लेने होंगे। अभी हरियाणा ने 8.5 प्रतिशत ब्याज पर सबसे महंगा कर्ज उठाया है तो वहीं मध्यप्रदेश ने भी महंगे कर्ज लेना शुरू कर दिए हैं। इन कर्जों की किस्तें आने वाले समय में शुरू हो रही हैं। इसके कारण कुल राजस्व का 15 प्रतिशत केवल ब्याज मेंं ही देना होगा। राज्यों पर जीएसटी का नुकसान भी महंगा पड़ रहा है। लगातार बढ़ती देनदारी के कारण अब राज्यों को अपने नागरिकों पर अब नए टैक्स लगाना होंगे। सबसे ज्यादा मार बिजली की दरों पर पड़ेगी, क्योंकि सभी राज्यों को बिजली कंपनियों का भारी बकाया चुकाना है।
उन्हें भविष्य में बिना भुगतन बिजली मिलना कठिन होगा। बिहार की हालत सबसे ज्यादा दयनीत हो रही है क्योंकि यहां का राजस्व घाटा सर्वोच्च शिखर पर पहुंच चुका है। रिजर्व बैंक की ताजा बुलेटीन में कहा गया है कि राज्य जब तक अपने रेवड़ी बांटने वाले कार्यक्रम बंद नहीं करेगा तो आने वाले सालों में उसे कर्ज की किस्ते और अत्यधिक ब्याज पर भरनी होगी, जिससे राजस्व का 25 से 30 प्रतिशत तक ब्याज और किस्तों में जाएगा। केन्द्र सरकार पहले से ही कर्ज में डूबी हुई है, ऐसे में राज्य सरकारों को राहत की केन्द्र सरकार से कोई संभावना भविष्य में नहीं रहेगी। इसका असर रोजगार से लेकर विकास कार्यों तक दिखाई देगा। सरकारों को हर विकास कार्य के लिए अब कर्ज लेने होंगे। मध्यप्रदेश में तीन लाख करोड़ से ज्यादा का कर्ज हो चुका है और राज्य सरकार अब हर दूसरे महीने 2000 करोड़ का नया कर्ज उठाकर कामकाज चला रही है।