इन दिनों भाजपा में उलटी गंगा बह रही है। भाव ऐसा कि भगवान ही अब भक्त के भरोसे हो गए हैं। कैलाश विजयवर्गीय के महापौर उम्मीदवारी के दौरान शहर के कई कमजोर पार्षद उम्मीदवारों का बेड़ा उन्होंने अपने साथ ही पार लगा दिया था। इसी हवा के सहारे फिर आगे होते रहे चुनाव में उमाशशि शर्मा और कृष्णमुरारी मोघे तक पार्षदों के तारनहार बने रहे। इसके बाद मालिनी गौड़ जब महापौर बनीं, तब भाजपा सशक्त हो चुकी थी और इसी कारण किए गए काम का प्रभाव बना रहा। फिर मालिनी गौड़ द्वारा शहर को दिलाए गए कई तमगों का लाभ भी भाजपा को मिला। अब तक के चुनाव में महापौर ही पार्षदों के लिए तारनहार होते थे। यह पहला चुनाव हो रहा है, जब भाजपा पार्षद उम्मीदवारों को अपने महापौर के बारे में भी जानकारी देना पड़ रही है। लोकप्रियता या पहचान के मामले में महापौर उम्मीदवार पुष्यमित्र भार्गव शून्य हैं और इसी के कारण इस बार पार्षदों को अपनी नैया अपने भरोसे ही पार लगाना होगी।
दूसरी ओर क्षेत्र में महापौर उम्मीदवार के बारे में पूछे जाने पर पार्षद भी लंबी रामायण के चलते कन्नी काट रहे हैं, वहीं भाजपा के ही कार्यकर्ता, जिन्होंने कोरोना काल में अपने परिवार में कुछ खोया है, वे यह पूछते हैं कि उस समय तो यह दिखाई नहीं दिए। पिछले दिनों मिल क्षेत्र के एक ताकतवर भाजपा नेता से कार्यकर्ताओं ने सीधे सवाल किया कि नेताजी, आप तो आप के महापौर उम्मीदवार से यह पूछकर बता देना कि कोरोना काल में भाजपा के अच्छे ताकतवर कार्यकर्ताओं के परिवारों में आए दु:ख के दौरान एक भी जगह क्या वे दिखे हैं। इसे ऐसे भी समझे तो पहले ट्रक ड्रायवर लेकर आते थे। पहली बार ऐसा हो रहा है कि ड्रायवरों को ट्रक लेकर आना पड़ रहा है। कुल मिलाकर इस बार भाजपा यह चुनाव अपने चार महापौर के किए गए कार्यों को लेकर ही अपनी नैया पार लगाने में लगी हुई है, क्योंकि महापौर उम्मीदवार की पहचान या सामाजिक सरोकार अभी तक तो शून्य है।
फुफाओं से परेशान बड़े बुजुर्ग…
चुनाव जैसे-जैसे चरम पर बढ़ रहा है, वैसे-वैसे कांग्रेस और भाजपा दोनों में ही फुफाओं को मनाने में भारी मशक्कत करनी पड़ रही है। बुआ मान भी जाए तो फूफा को मनाने में खर्चे के साथ हाथ जुड़ाई भी अलग से लग रही है। क्षेत्र क्रमांक चार में भी कुछ ऐसा ही मामला सामने आ रहा है। कांग्रेस के ही उम्मीदवार बोल रहे हैं कि इन दिनों कई वार्डों में सुरजीत चड्ढा भी फूफा बने हुए हैं। उन्हें इस बात का गुस्सा है कि उनका दादाजी आकर अगले चुनाव के लिए यहां से नए फूफा का ऐलान कर रहे हैं। एक म्यान में दो तलवार और एक क्षेत्र में दो फूफा हो नहीं सकते। ऐसा नहीं है कि भाजपा में नहीं हैं, पर भाजपा में जितने फूफा तेवर वाले हैं, तो उन घरों में बुआ की एकतरफा चलने के कारण फूफा को ज्यादा मौका नहीं मिल रहा है। आधी रात और सुबह इन दिनों दोनों ही दलों के बड़े बुजुर्ग अपनी पार्टी के फुफाओं को मनाने के लिए घूमते दिखाई देते है। पूछने पर कहते है दुल्हा घोड़ी पर बैठा है और यहां मेरा टेसू यही अड़ा खाने को मांगे दहीबड़ा पर अड़ा हुआ है। देखते है समझा तो दिया है अब जो ना समझे वो… यूं भी भाजपा की नाव नदी के तेज बहाव में इतनी तेजी से चल रही है कि घरवाले और नाव चलाने वाले दोनों ने ही अपने चप्पू निकालकर नाव के अंदर रख लिए हैं। जब बिना कुछ किए-धरे ही नाव लपक रही है तो काहे की चिंता।