गुस्ताखी माफ-झटके देने वालों को भी झटके लगते है…इस अंगने में तिजोरी का क्या काम…
झटके देने वालों को भी झटके लगते है…
इन दिनों बिजली कंपनी के दफ्तर में अंडर करंट तेजी से दौड़ रहा है। ऊपर से सामान्य दिखने वाले अधिकारी नीचे से झटके खा रहे हैं। पूरा मामला मलाईदार पदों पर पदोन्नति को लेकर है। पिछले दिनों गजेंद्र कुमार अपनी पदोन्नति के लिए इंदौर की मंत्री से पत्र लिखवाकर ठोक आए थे। अगले ही दिन जादूगरों ने यहां पर एक और किला ठोक दिया। एक तीर से दो शिकार हो गए। मंत्री भी निपट गईं और गजेंद्र कुमार भी। आरोप है कि तीन साल पहले उन्होंने एक महिला कर्मचारी के साथ यौन शोषण किया था। सवाल उठता है कि तीन साल तक इस फाइल पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई। फिर वह महिला तीन साल तक चुप क्यों रही? इधर, एक और इंजीनियर के ड्रॉज से नकद रिश्वत जब्त हो गई। इंजीनियर का कहना है उन्होंने न ली, न कहा, फिर भी निपट गए। अब दो और इंजीनियर नए मामलों में उलझने जा रहे हैं, जबकि बीस करोड़ के घोटाले के हमाम में सारे इंजीनियर नहाए हुए हैं, परंतु उस मामले में शानदार चुप्पी साध रखी है।
इस अंगने में तिजोरी का क्या काम…
नगर निगम के जनकार्य विभाग के सारे गोले बदल दिए गए हैं। अब यहां पर एलईडी बल्ब लगाए जाएंगे। पुराने गोले कई सालों से अपने घरों में यहां का उजाला ले जाकर कर रहे थे, परंतु पूरी जादूगरी के बड़े खिलाड़ी एक बार फिर बच गए। बचना भी तय था, नगर निगम की हालत भोपाल से आने वाले आईएएस अधिकारियों के लिए गरीब तिजोरी जैसी रहती है। जो आता है, वह आने से पहले नगर निगम की ही घंटी बजाता है। अब रेडिसन में ठहरने का मामला हो या सयाजी में या फिर मैरिएट में। सारे पैसे जनकार्य विभाग से ही जाते हैं। भरोसा नहीं होता तो इन होटलों में ठहरने वाले अधिकारियों के भुगतान की जानकारी ली जा सकती है… तो फिर खिलाड़ियों को तो बचना ही था। एक बात यह समझ में नहीं आ रही कि जनकार्य विभाग में तिजोरी का क्या काम है? यह तिजोरी पिछले कई बरसों से लगी हुई है। नकद का कोई काम होता नहीं, फिर यहां तिजोरी की क्या जरूरत। निगम की लीला है, निगम ही जाने।
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