आज भी सिद्धांतों की पत्रकारिता आपके प्यार-स्नेह के 44 वर्ष
आ ज ही के दिन 27 नवंबर 1980 को शाम 5 बजे एक सादे समारोह में दैनिक दोपहर का प्रकाशन शुरू हुआ था। इस दौरान कार्यक्रम के अतिथि वरिष्ठ पत्रकार अभय छजलानी और कृष्ण कुमार अष्टाना थे। 4 पृष्ठ के इस अखबार की कीमत मात्र 20 पैसे रखी गई। इस दौरान अतिथियों ने पत्रकारिता के सिद्धांतों का एक संकल्प भी रखा और बताया कि पत्रकारिता के मूल सिद्धांत क्या हैं। कोई भी अखबार अपने पाठकों से ही लखपति होता है।
आर्थिक आधार पर अखबार सक्षम होते हैं, पर उनके पास पत्रकारिता के मूल सिद्धांत को बचाने को लेकर कोई लक्ष्य नही होता है। दैनिक दोपहर आज भी पत्रकारिता के मूल सिद्धांतों पर कायम है। कई चढ़ाव-उतार देखने के बाद भी सदैव अखबार ने संघर्ष करना बेहतर समझा। दैनिक दोपहर के संस्थापक विद्याधर शुक्ला भी इन सिद्धांतों को लेकर अखबार को आगे बढ़ाते रहे हैं।
आज दैनिक दोपहर अपने मजबूत पाठकों के कारण ही पहचाना जाता है। समय भले ही बदला हो पर दैनिक दोपहर के जनसरोकार आज भी पुराने हैं। समय के साथ तेवर भी बदले और कलेवर भी बदला। दैनिक दोपहर के पहले दिन का अंक कुछ इसी प्रकार का रहा था, फर्क केवल यह रहा कि उस वक्त तकनीक ब्लैक एंड व्हाइट और आज रंगीन हो गई है। दैनिक दोपहर ने इस तकनीक को आत्मसात करने के प्रयास भी समय के साथ किए। अखबार के लिए आज भी शहर और आम आदमी का हित सबसे ऊपर है। इसी के साथ खबरों को अलग-अलग नजरियें से खबरों के पार ले जाने में भी हम आपके लिए सदैव तैयार हैं।
अखबार अपने पाठकों का सदैव आभारी है, जो संघर्ष में भी अखबार को उसके सिद्धांतों की कसौटी पर खरा उतरने के लिए कसते रहे और इसी लिए दैनिक दोपहर हमेशा आम आदमी की आवाज बनकर खड़ा रहा। एक बार फिर दैनिक दोपहर के 43 वर्ष पूरे होने के बाद 44वें वर्ष में प्रवेश पर दोपहर परिवार सदैव इस शहर का ऋणी रहेगा, जिसने इस दिए की ज्योत को जलाने में अपना योगदान दिया। हम विश्वास दिलाते हैं कि आपके जीवन में आने वाले अंधेरे में प्रकाश की कुछ किरणें देकर उसे ज्यादा उजाला दे सकें। एक बार फिर पाठकों को धन्यवाद…