फ्री के फुस्सी बम का रोना रोते रहे कलेक्टोरेट के कर्मचारी

दीपावली पर मुफ्त में शान दिखाना पड़ा महंगा, उड़ी खिल्ली

इंदौर। सरकारी कर्मचारियों को हर चीज फ्री की बहुत अच्छी लगती है। फिर भला पटाखे के पैसे देकर वे क्यों खरीदने लगे। ऐसे ही फ्री के पटाखे लेने वाले कलेक्टोरेट के कर्मचारी पिछले दिनों दिनभर फ्री के फुस्सी बम का रोना रोते दिखाई दिए। कलेक्टोरेट के कर्मचारियों से ज्यादा समझदार पटाखा व्यवसाय निकल गए। उन्होंने फ्री के पटाखे लेने वाले कलेक्टोरेट के कर्मचारियों को खुश करने के लिए वर्षों पुराना स्टॉक पकड़ा दिया, जिसमें एक भी बम नहीं फूटा। फ्री के पटाखे की शान झाडऩे वाले कलेक्टोरेट के कर्मचारियों को फुस्सी बम बहुत महंगे पड़ गए और खिल्ली उड़ी सो अलग। अब भला मुफ्त के बम फुस्सी निकल जाएं तो सरकारी कर्मचारी कर भी क्या सकते हैं, सिर्फ रोना ही रो सकते हैं।

दरअसल, दीपावली पर कलेक्टोरेट से पटाखा लाइसेंस जारी होते हैं। कलेक्टोरेट के कर्मचारी इन्हीं पटाखा लाइसेंस की आड़ में व्यवसायियों से बड़ी मात्रा फ्री में पटाखे लेते हैं। इन्हीं पटाखों को फोड़कर कलेक्टोरेट के कर्मचारी अपनी शान दिखाते हैं। ऐसा पहली बार नहीं हुआ। गत वर्ष भी कलेक्टोरेट में 50 पैकेट भेजे गए थे, जिसमें अधिकांश पटाखे चलाने पर आवाज ही नहीं हुई। फ्री में पटाखा लेकर घर गए अधिकारियों को परिवार के गुस्से का भी शिकार होना पड़ा। बच्चों ने उनसे कहा, बेहतर होता आप पैसा देकर नए पटाखे लेकर आते तो हमें मोहल्ले में हंसी का पात्र नहीं बनना पड़ता। जब लोगों के सामने कलेक्टोरेट के सरकारी कर्मचारियों ने बमों की बत्ती जलाकर शान दिखाने की कोशिश की तो उनकी सारी हेकड़ी धरी रह गई। जो फ्री के पटाखे का कह कर कलेक्टोरेट के कर्मचारी शेखी बघार रहे थे, उसकी खूब खिली उड़ाई गई।

…और ये साहब के सात पैकेट में फुस्सी पटाखे

सिर्फ इतना ही नहीं एक बड़े कक्ष में बैठने वाले आला अधिकारी के अधीनस्थ कर्मचारी ने पटाखा व्यवसायी को फोन घनघनाया और हेकड़ी दिखाते हुए कहा कि साहब ने 7 पैकेट पटाखे की डिमांड की है। जल्दी से जल्दी ये पटाखे पैक करके पहुंचा दो। फिर क्या था समझदार पटाखा व्यवसायी ने फुस्सी बम के पैकेट भेज दिए। अब इसे भी विचित्र सहयोग कहें या पटाखा व्यवसाय का दिमाग कि इन पैकेट में से 7 बम तो छोड़े, एक भी पटाखा नहीं फूटा। प्रत्यक्षदर्शी ने बताया कि वह पटाखे लेने रीजनल पार्क स्थित दुकानों पर गया था तो वहां उसने कुछ कर्मचारियों को देखा, जो साहब के नाम से पटाखे मांग रहे थे। सिर्फ पटाखे ही नहीं लिए बल्कि पटाखा व्यवसाय को चमका भी रहे थे।

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