गुस्ताखी माफ़- भाजपा में भीष्मपिताओं का गुरूज्ञान… हमारे भिया त्रिकालदर्शी हैं…

भाजपा में भीष्मपिताओं का गुरूज्ञान…

एक बार फिर भाजपा में नये सदस्य बनाने को लेकर अभियान शुरु हो गया है। संगठन के तमाम नेता नई सदस्यता के लिए टोकनी में दाने लेकर घूम रहे हैं। लक्ष्य तय कर दिये गये हैं परंतु दूसरी ओर इसी भाजपा को स्थापित करने वाले नेता जो अपने अनुभव नये नवेले कार्यकर्ताओं को दे रहे हैं उनका कहना है कि ६ अप्रैल १९८० को भाजपा का जन्म हुआ था और बड़े पैमाने पर यह अभियान चलाया गया था। समय के साथ इन तमाम समर्पित कार्यकर्ताओं को दरकिनार करने का काम इसी भाजपा में देखा गया जहां पचास साल और साठ साल के संघर्ष करने वाले कार्यकर्ताओं को घर बैठने की सलाह भी नेता देते रहे इन्हें भाजपा पर बोझ माना जाने लगा था। दूसरी ओर वरिष्ठ भाजपा नेता जो कई जगह मैदानों में लड$़े जेल भी गये और अभी भी खाली हाथ ही खड़े हैं उनका कहना है कि जिन्हें अब भाजपा में आना है उन्हें पहले कांग्रेस में जाना चाहिए जमकर भाजपा के नेताओं पर प्रहार करना चाहिए इसके बाद जब कामकाज ठीक हो जाए तब भाजपा में उनके लिए दरवाजे खुले हैं और यहां पर जब वे आयेंगे तो उन्हें सम्मान भी मिलेगा, पद भी मिलेगा और कद भी मिलेगा और हमारे जैसे तमाम कार्यकर्ता उनके लिए दरी बिछाकर पलक पावड़े बिछाकर बैठे दिखेंगे और कुछ के लिए तो कहार की भूमिका में भी भाजपा कार्यकर्ता रहेंगे। कांग्रेस में रहकर जिन्होंने जितनी गाली ज्यादा बकी इन दिनों वे भाजपा में उतने बड़े पदों पर ऊपर पहुंच रहे है संघ को संगठित गुंडों का गिरोह करने वाले भी पदों पर शोभित है। इसके उदाहरण भी देते हुए उन्होंने कहा कि नाम देख लो इन दिनों यह सभी मुख्यमंत्री के आसपास ताकतवर होकर दिखते हैं जबकि भाजपा का पुराना कार्यकर्ता अभी भी केवल अपने सम्मान को बचाने में ही लगा हुआ है। यानि जितनी ज्यादा गाली उतना बढ़ा पद।

 

हमारे भिया त्रिकालदर्शी हैं…

भिया को दूर का दृश्य पहले से ही दिखाई देने लगता है। इसीलिए वे त्रिकालदर्शी भी कहलाते हैं। वैसे भी आरके स्टूडियो में आधी बिरादरी दूरदर्शी है इसलिए वे भाजपा के दूसरे नेताओं से पहले ही दौड़ में आगे निकल जाते हैं। अब भिया ने छह महीने पहले ही प्राधिकरण के अध्यक्ष रहे जयपालसिंह चावड़ा को लेकर विधिवत समागम में घोषणा की थी कि उन्हें अब ग्रह कार्य में दक्ष हो जाना चाहिए, जबकि वे उस समय विधानसभा के लिए भी दावेदार माने जा रहे थे और माना भी जाना चाहिए था क्योंकि भगत की भक्ति का उन पर अच्छा खासा प्रभाव था और इसी आधार पर वे दूसरों को पीछे छोड़ते हुए अपने पुण्य कार्यों की बदौलत अध्यक्ष पद पर पहुंच गये। संगठन मंत्रियों को उस दौरान संगठन ने भी उपकृत करने में कोई कोताही नहीं बरती अब भाजपा के ही कई नेता यह कहने में नहीं चुकते की चावड़ा का फावड़ा जमकर चला। अब जो भी हो पर आने वाले दिनों में शहर को चार ओवरब्रिज की सौगात भी मिल रही है वह उन्हीं के कार्यकाल में स्वीकृत होकर प्रारंभ हुए थे। हालांकि यह मामला अलग है देखना यह है कि अब समय के साथ ग्रह बदलने से भगत की भक्ति का प्रभाव कम हो गया है तो हित का आनंद लेने के लिए आपका हितानंद होना जरुरी होता है। अब देखना होगा कि भिया की भविष्यवाणी सही होती है कि एक बार फिर बारिश के बाद फिर फुल खिलने का अवसर आता है या नहीं। इधर गौरव बाबू पर कुछ बोलने की जरूरत नही है भिया के अनुसार तय है।

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