पटवारी की हरकतें कांग्रेस के ताबूत में आखिरी कील ठोकेंगी
पिछले लोकसभा चुनाव के नतीजे ऐसे आये की कांग्रेस का मुर्हरम और भाजपा की ईद दोनों ही एक ही दिन में पड़ गये। कांग्रेस परिणामों को लेकर जहां अपनी छाती अभी तक पीट रही है वहीं दिग्गज नेता मन ही मन में कोमा में पड़े हुए हैं। कई कांग्रेस नेता अब कोमा को ही अपनी मुक्ति भी मान रहे हैं। चुनाव से पहले कांग्रेसियों को प्रसव पीड़ा में विपरित परिस्थिति में भी बेहतर परिणाम के आसार दिखाई दे रहे थे। परंतु ऐसा गर्भपात हुआ कि कई दिग्गज नेताओं ने अपने घरों में कामकाज संभाल लिया। इधर इस परिणामों के बाद भी कांग्रेस के अध्यक्ष यानी जीतू पटवारी कांग्रेस की मजबूती के लिए उठ रही उंगलियों से सुधार के बजाए उंगलियां काटने में ही जुट गये।
दूसरी तरफ कांग्रेस के इंदौर में नगर अध्यक्ष सुरजीत चड्ढा और जिला कांग्रेस अध्यक्ष सदाशिव यादव को इसलिए निलंबित कर दिया कि उन्होंने कांग्रेस कार्यालय में निमंत्रण देने आये भाजपा के वरिष्ठ नेता और राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान और साख बनाने वाले कैलाश विजयवर्गीय की आवाभगत ज्यादा कर दी थी। विजयवर्गीय कांग्रेस कार्यालय में प्रदूषण फैलानेनहीं रेवती रेंज में आयोजित पौधारोपण समारोह का निमंत्रण देने आये थे। चूंकि वे अब राष्ट्रीय स्तर के नेता हो चुके हैं और कांग्रेस की दूसरी पीढ़ी उनके छोटे भाईयों की तरह ही जानी जाती है। राजनैतिक विचारधारा अलग विषय है। यदि कांग्रेसियों को कोई एतराज था तो वे उस कार्यक्रम में शामिल नहीं होते और ऐसा हुआ भी परंतु कांग्रेस नेताओं पर प्रदेश अध्यक्ष द्वारा की गई कार्रवाई यह बता रही है कि कांग्रेस में अब पराभाव के साथ वैचारिक शून्यता भी हो गई है।
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यहां हम एक ऐसा किस्सा बता रहे हैं कि जो यह बतायेगा कि इसी शहर में अलग-अलग दलों के बीच वैचारिक विरोध के बाद भी रिश्तों का कितना सम्मान था यह देखा जा सकता है। जब कुशाभाऊ ठाकरे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने तो वे इंदौर भाजपा कार्यालय पर आये थे इस दौरान उन्होंने भाजपा कार्यकर्ताओं को जो गेट पर खड़े थे कहा कि मेरे एक मित्र आने वाले हैं आ जाए तो मेरे पास ले आना। कार्यकर्ताओं ने पूछा कौन है? तो उन्होंने कहा था आयेंगे तो पता लग जाएगा।
थोड़ी देर बाद कांग्रेस के कद्दावर नेता और मंत्री रहे सुरेश सेठ अपनी थैली में सामान लेकर भाजपा कार्यालय पहुंचे उनके आते ही कार्यालय में माहौल बदल गया। इस बीच उन्होंने पूछा कि किधर है कुशाभाऊ इसके बाद कार्यकर्ता उन्हें ठाकरे जी के कमरे में ले गये जहां बंद कमरे में दोनों के बीच ठहाकों के साथ नाश्ता भी चला और इसके बाद जब सुरेश सेठ वापस बाहर आये तो यहां पर खड़े पत्रकारों ने भी पूछा कि आप भाजपा में आ रहे हैं क्या तो उन्होंने कहा सवाल ही नहीं उठता। यह मेरी विचारधारा नहीं है। पर कुशाभाऊ मेेरा भाई भी है और दोस्त भी अभी उस पर जवाबदारी ज्यादा है और यह लापरवाह है। jitu patwari
इसलिए घर से उसके लिए खाना और मिठाई साथ में लाया था ताकि अपने सामने ही खिला सकूं। इसी के साथ उन्होंने यह भी कहा कि मैने उससे कहा है कि बेटे की शादी है मैं मंच पर रहूंगा इसलिए समय पर आकर गेट पर खड़े हो जाना और वह आयेगा। इस शहर में राजनीति कैसी भी हो पर राजनेताओं के सम्मान में दोनों ही दलों में कोई दुराभाव नहीं है। खुद दिग्विजयसिंह ऐसे मामलों में अपने रिश्तों के लिए ही जाने जाते हैं। उनकी और विक्रम वर्मा की दोस्ती जगजाहिर थी। इसके अलावा जब कांग्रेस शिखर पर थी तब भाजपा के कई दिग्गज नेता जो कांग्रेस से मोर्चा लिया करते थे वे भी भोपाल में महेश जोशी के बंगले पर ही खाना खाने के बाद आंदोलन में जाते थे।
इंदौर के नर्मदा आंदोलन को भी कांग्रेसियों को याद रखना चाहिए, जिसमें कांग्रेस और भाजपा के नेता शहर में नर्मदा लाने को लेकर एक ही जाजम पर एक ही झंडे के नीचे आंदोलन में उतरे थे। सवाल उठ रहा है कि क्या अब कांग्रेस के आदर्श और संस्कृति खत्म हो गई है या जीतू पटवारी इसके आखिरी गवाह भी होंगे। यह वही कांग्रेस है, जिसने अटल बिहारी वाजपेयी को राजीव गांधी के कार्यकाल में देश का प्रतिनिधत्व करने के लिए अमेरिका भेजा था। जहां पर उनका इलाज भी होना था। बेहतर होता की जो कांग्रेस अपने समापन की ओर अपने कर्मों से बढ़ रही है जनाधार हीन और संगठन विहिन पार्टी का नेतृत्व अब ऐसे लोग कर रहे हैं जो समय आने पर अपने वार्ड का चुनाव भी जीत जाये इसकी संभावना नहीं है।