संगीत की आड़ में कतिपय आयोजक अपना उल्लू सीधा करके कमा रहे हैं धन

गायकों को मंच देने के नाम पर लिए जा रहे हैं पैसे, बड़ी तादाद में पैदा हो गये हैं आयोजक

Some organizers are earning money under the guise of music.
Some organizers are earning money under the guise of music.

इंदौर। इंदौर में इन दिनों संगीत कार्यक्रमों की बाढ़ आई हुई है, रोजाना दो से तीन-चार स्थानों पर संगीत के कार्यक्रम आयोजित किया जा रहे हैं। अधिकांश कार्यक्रम कराओके सिस्टम पर होता है बाकी लाइव सिस्टम पर। कराओके आयोजन में धन ज्यादा नहीं लगता है सिर्फ हॉल बुकिंग और साउंड सिस्टम की आवश्यकता होती है जबकि लाइव परफॉर्मेंस में की- बोर्ड, ड्रम, सैक्सोफोन, ट्रंपेट, ढोलक, कांगो आदि आवश्यकता अनुसार उपयोग किए जाते हैं जिसका बजट कराओके म्यूजिक से चार-पांच गुना ज्यादा होता है। इधर इन दिनों बड़ी तेजी से शहर में बड़ी तादाद में गाने के शौकिन पैदा होते जा रहे हैं। इनमे कई बाथरुम सिंगर भी शामिल हैं। अब इनके इस शौक को पूरा करने के लिए कई आयोजन हो रहे हैं। जो इन गायकों को प्लेटफार्म देकर हजारों रुपये कमा रहे हैं।

इंदौर में विगत 5 सालों से संगीत आयोजनों के कार्यक्रमों में तबसे तेजी आई जबसे आयोजनों को करने के लिये गायक कलाकार आपस में पैसा इकठ्ठा कर हॉल बुक करने के साथ सारे खर्चों को समायोजित करते थे। धीरे धीरे संगीत के कुछ अच्छे नए ग्रुप भी बनते चले गए, जिनसे संगीत के कार्यक्रमों में विविधता आने लगी। music scam in indore

इंदौर के चार सभागृह आज भी प्रमुख होते थे जिसमें बड़े और स्तरीय आयोजनों के लिये रविन्द्र नाट्य गृह, लाभ मण्डपम, जाल सभागृह और माई मंगेशकर जैसे स्थानों पर आयोजन होते रहे तो वहीं छोटे आयोजन अभिनव कला केन्द्र, माथुर सभागृह, मध्यभारत हिन्दी समिति हाल और इंदौर प्रेस क्लब भवन सहित कई स्थानों पर होना शुरु हो गए। राजेन्द्र नगर स्थित नए हॉल में भी अच्छे कार्यक्रमों की सौगात मिलने लगी है। अब इंदौर ही नहीं देवास, महू, सेंधवा आदि शहरों से भी गायक कलाकार रंग बिखेरने लगे हैं।

संगीत का जादू इंदौर में इसलिये भी है कि यहाँ संगीत के जो सुधि श्रोता होते हैं वें आम तौर पर दूसरे स्थानों पर शायद इतने नहीं पाए जाते होंगे। हांलाकि 90 प्रतिशत संगीत आयोजन श्रोताओं को निशुल्क रुप से देखने सुनने को मिल जाते हैं मगर कुछ खास आयोजन आमंत्रण पत्र लाने पर प्रवेश मिल पाता है। फिर भी अधिकांश कार्यक्रम नि:शुल्क ही हो जाते हैं इसलिये संगीत के रसिक श्रोताओं की शाम इत्मीनान से कहीं न कहीं किसी न किसी कार्यक्रम में गुजर जाती है।

Also Read – बिल्डिंग परमिशन में ई वाहनों का पार्किंग स्थान अनिवार्य होगा

संगीत की इस पवित्र धारा में पिछले दो सालों से धन लालसा की गन्दी बू आने लगी है जिसमें पैसा कमाने के लिये अब आयोजक आगे आने लगे हैं। खासकर कराओके सिस्टम पर कार्यक्रमों की संख्या बढ़ती जा रही है। अनेक आयोजक इसमें केवल धन कमाने का रास्ता ढूंढने लगे हैं।

कराओके याने जो संगीत रेकार्डडेट ओरिजनल और नियोजित होता है, इसमें सिर्फ गायक को उसे अपनी आवाज भर देनी होती है, इसलिये ऐसे कार्यक्रमों का खर्च हॉल बुकिंग के अलावा मुख्य खर्च साउण्ड सिस्टम, वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी भर का रह जाता है जो सामान्य सभागृह में कुल खर्च 10 से 15 हजार तक में वहन हो जाता है। लेकिन इसी खर्च की आड़ में दो से चार गुना कमाने के गुर आजमाए जाने लगे हैं। आयोजक एक- एक या दो- दो गीत देकर गायक कलाकारों की भीड़ बढ़ाने लगे हैं।

प्राप्त जानकारी के अनुसार ज्यादातर बाथरुम सिंगर और शौकिया सिंगर को इसमें मंच तो मिलने लगा है लेकिन उनसे अब दो हजार रुपए से तीन हजार रुपए तक वसूले जाने लगे हैं। ऐसे में अधिकतम 20 से 30 गायक कलाकार और 30 से 40 गीतों की प्रस्तुति कराओके आयोजनों में होने लगी हैं, याने सीधे तिगुनी या चार गुनी कमाई का आसान तरिका अपनाया जाने लगा है।

ऐसा नहीं कि सिर्फ कराओके सिस्टम पर ही पैसा कमाने का तरिका खोजा जा रहा है बल्कि कुछ आयोजक लाभ कमाने के लिये पूर्ण व्यावसायिक मानसिकता पालने लगे हैं। लाइव आयोजनों में गायकों से 3 से 5 हजार रुपए तक वसूलने लगे हैं। इस मामले में इंदौर की एक पुरानी संस्था ने व्यावसायिकता के आंकड़े ही बदल डाले। मिली जानकारी के अनुसार मो रफी के तीन दिनी आयोजनों में 33 गायकों की जोड़कर सौ गाने गंवाए गए। बताया जाता है कि रफी पर पहली बार ऐसे आयोजनों से प्रतिसाद तो खूब मिला लेकिन कई कमजोर गायकों ने स्वाद भी श्रोताओं का बिगाड़ा।

बाद में जानकारी मिली कि एक एक गायक से गानों के हिसाब से धन वसूला गया। जैसे 3 गानों पर 4,500 रुपए, चार गानों पर पांच हजार तो 4 से अधिक गानों पर 7 से 10 हजार रुपए। इस तरह सौ गानों की सौगात दर्शकों को देने के नाम पर दो लाख रुपए से ज्यादा का मुनाफा कमा लिया गया। जबकि तीन दिनी आयोजन का कुल खर्च आधा भी नहीं रहा, लेकिन कमाल था कि इतना बड़ा आयोजन जो कर दिखाया। इसी प्रकार कुछ शख्स ऐसे भी हैं जो पूरे कार्यक्रम को कराने का जिम्मा लेकर इंदौर की नामचीन हस्तियों को बतौर मुख्य अतिथि या प्रायोजक बनाकर पेश कर लेते हैं और एक कार्यक्रम में ही मोटी राशि जेब के हवाले कर लेते हैं।

इस तरह इंदौर में संगीत के नाम पर पैसा कमाऊ चलन बढ़ता जा रहा है जो श्रोताओं को संगीत सेवा देने के नाम पर चाहे जो परोस कर अपना मतलब साधने लगे हैं तो कुछ उभरते गायकों को आगे बढ़ाने का लालच देकर शोषण भी करने लगे हैं। जरुरी है इस परिपाटी पर अब रोक लगे वरना इंदौर में संगीत के नाम पर धंधेबाजों का बोलबाला बढऩे लगेगा।

You might also like