संपादकीय: चुनावी नतीजों से सवाल खड़े हो गए बहुसंख्यक राष्ट्रवाद पर

Election results raise questions on majority nationalism
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एक ओर जहां देश में इस बार भारतीय जनता पार्टी को स्पष्ट बहुमत ना मिलने के कारण अन्य दलों के साथ मिलकर सरकार बनानी पड़ रही है। वहीं भाजपा की इस नई सरकार के सामने जहां कई चुनौतियां खड़ी दिखाई दे रही है। क्योंकि जिस तरीके से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काम करने का तरीका है उसमे वे किसी से सलाह नहीं लेते रहे हैं ऐसे में उन्हें अब सारे फैसले प्रधानमंत्री कार्यालय से करना संभव नहीं है।

दूसरी ओर लोकसभा चुनाव के नतीजों ने इस बार भाजपा की राजनीति में भी कई सवाल खड़े कर दिये हैं। पिछले डेढ़ दशक से भाजपा के बहुसंख्यक राष्ट्रवाद को लेकर जो प्रचार चलाया जा रहा था वहीं इस चुनाव में बेपटरी हो गया। भाजपा और उनके सहयोगी दल मिलकर भले ही बहुमत जुटाने में कामयाब होकर नई सरकार के गठन में लग गये हैं परंतु अब भाजपा को अपने कई एजेंडे दरकिनार करने होंगे अगले साल राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अपना शताब्दी वर्ष भी राष्ट्रीय स्तर पर मनाने की तैयारी कर रहा था उसे भी बड़ा झटका लगा है।

इस चुनाव में जहां बहुसंख्यक राष्ट्रवाद को सामने रखकर भले ही राममंदिर, धारा ३७०, सामान नागरिक संहिता को आधार बनाकर ही प्रचार किया गया था इसमे जहां प्रधानमंत्री खुद कई सभाओं में इस देश के मुसलमानों को आरक्षण देने संबंधी मामलों को उठाते रहे और बहुसंख्यक आबादी को अपनी ओर लगातार बनाये रखने के लिए प्रचार करते रहे इसके बाद भी भाजपा के बहुमत से दूर रह जाने को लेकर अब यह माना जाना चाहिए कि देश में बहुसंख्यक आबादी को लेकर की जा रही राजनीति में परिवर्तन का समय भी आ गया है।

पिछले दस सालों में हर बार इन्हीं मुद्दों को घर-घर तक पहुंचाया जा रहा था। परंतु अब तीसरे दौर में भाजपा के राष्ट्रवाद के एजेंडे पर अब पूरी तरह रोक लग चुकी है। आरएसएस भी तीसरे दौर की सरकार के बाद यह अच्छी तरह समझ गया है कि यह सरकार अब केवल एक ही जगह पर खड़े होकर संघ के एजेंडे पर कदमताल ही करती रह सकती है। हालांकि लगातार बहुंसख्यक राष्ट्रवाद का चेहरा सामने रखकर चुनावी तैयारियों के चलते मोदी सरकार देश के मुख्य मुद्दों से बुरी तरह भटक गई थी। लगातार बढ़ रही महंगाई के अलावा भारी बेरोजगारी को वह देख नहीं पाई थी। माना जा रहा है कि तीसरे दौर की सरकार ने अब आम लोगों के मुद्दों पर सरकार कदम उठायेगी क्योंकि इस बार की सरकार पर संघ के ऐजेंडे का कोई प्रभाव नहीं रह पायेगा।

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