गुस्ताखी माफ़: मजदूरों की पठानी ने पिंजारों को जोर करवा दिए…किया धरा… गिलास फोड़ा 5 रुपए…प्रधानमंत्री ने ताई का कद बता दिया…
मजदूरों की पठानी ने पिंजारों को जोर करवा दिए…
अंतत हुकुमचंद मिल के मजदूरों को उनके संघर्ष के बाद उनकी मेहनत का रुका हुआ पैसा मिल गया। इस मामले में सभी अपनी-अपनी पीठ थपथपा रहे हैं हो कुछ ऐसा गया है कि मार रहे थे पठान और फुल रहे थे पिंजारे… यह इसलिए की पिछले बीस सालों से ज्यादा समय से मजदूर ही लेबर कोर्ट से लेकर उच्चतम न्यायालय तक अपनी चप्पलें घिसते रहें चुनाव के चंद समय पहले उच्च न्यायालय ने जब इस मामले में सरकार को अंतिम अवसर देते हुए कोर्ट की अवमानना का मामला भी बना दिया तब जाकर मजदूरों के खातों में राशि पहुंचने की संभावना बनी। मजदूर नेता भी इस मामले में आखिरी तक अदालत में लड़ते रहे कि सरकार बदलने के बाद फिर यह मामला आगे उलझ जाएगा।
इसीलिए उच्च न्यायालय ने मानवीय संवेदना को देखते हुए समय से पहले सुनवाई कर इस मामले में फैसला दिया। इसके बाद पैसा लिक्विडेटर के खाते में जमा हो गया। अब उपलब्धि को लेकर कि मजदूरों के संघर्ष के बाद में सभी लोग शामिल हो रहे और दिखा रहे पैसा दिलाने में अहम भूमिका निभाई जबकि पिछले लंबे समय से इस भूमि के उपयोग को लेकर कोई भी परिवर्तन नहीं होने के बाद कमलनाथ की सरकार में इस भूमि का लैंड यूज बदला गया तब उसके बाद इस भूमि पर प्रोजेक्ट को लेकर तैयारी शुरु हुई।
एक हजार करोड़ से ज्यादा के इस प्रोजेक्ट से बड़ी राशि गृहनिर्माण मंडल के खाते में पहुंचेगी पर इस पूरी लड़ाई में जो लोग अपनी पीठ ठोक रहे हैं उनसे सबसे बड़ा सवाल यह है कि फिर पिछले बीस सालों में यह मामला अदालतों के दरवाजों पर क्यों ठोकर खाता रहा? अदालतें पठान बनकर सरकार का गला दबाती रही और अब पिंजारे बनकर अधिकारियों और नेताओं ने कल सारी उपलब्धि अपने खातों में डाल दी। जो भी हो बधाई के पात्र वे मजदूर नेता है जिन्होंने २६ साल इस लड़ाई को लड़ने में कोई कसर बाकी नहीं रखी किसी नेता ने यह नहीं पूछा कि इस लड़ाई के लिए पैसा कैसे एकत्र कर रहे हो। उपलब्धि में तो सभी शामिल होना चाहते हैं।
किया धरा… गिलास फोड़ा 5 रुपए…
आत्ममुग्ध कांग्रेस नेताओं की सरकार आउटर पर ही खड़ी रह गई स्थिति यह रही की कई दिग्गज नेता तो पटरी से उतरकर खुद ही स्टेशन पर जाकर सरकार आने का इंतजार करते रहे हालत यह रही कि दिग्गज नेताओं को सरकार आने का इस प्रकार गुमान होने लगा था कि एक नेता तो तबादलों को लेकर तैयारी भी शुरु कर चुके थे। दूसरे नेता अधिकारियों को धमका रहे थे कि सरकार बदलते ही तेवर बदल जाएंगे हजारों से हारे नेता इन दिनों अपने तेवर ही नहीं समझ पा रहे हैं। कांग्रेसियों की हालत खाया पिया कुछ नहीं, गिलास फोड़ा 5 रुपए वाली हालत रह गई है। बिना संगठन और बिना तैयारी के उम्मीदवारी लाने वाले नेताओं के लिए भी यह चुनाव सबक हो गया है कि उन्हें अब 2029 में भी उम्मीद नहीं करना चाहिए एक नेता तो राहुल गांधी होने लगे थे अपना क्षेत्र छोड़कर दूसरी विधानसभाओं में ऐसे प्रचार कर रहे थे, जैसे एक आध लाख वोट से जीतेंगे, जबकि भाजपा के दिग्गज नेता रमेश मेंदोला और कैलाश विजयवर्गीय आखरी दिन तक अपने क्षेत्रों को छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे। हर दिन पूरी ताकत से उतरते थे, जबकि नेताजी प्रदेश स्तर के नेता बनने के चक्कर में अपनी रही सही कसर भी गंवा चुके।