इंदौर। शहर की विधानसभा 3 भाजपा के लिए जहां प्रयोगशाला बन गई है। वहीं कांग्रेस में भी पूर्व मंंत्री स्व. महेश जोशी गुट का कब्जा आज भी बरकरार है। 1989 से भाजपा में बाहरी उमीदवार ही यहां भाग्य आजमा रहा है। विधानसभ 3 नम्बर का यहां का स्थानीय नेता कोई भी पनप नहीं पाया है। उम्मीदवारों को लेकर शुरुआत में भाजपा में नाराजगी तो उभरती है, लेकिन बाद में संगठन के दबाव में एकजुट हो जाते हैं। वहीं कांग्रेस में जोशी गुट जैसा नेता यहां कोई बन नहीं पाया है।
विधानसभा 3 में भाजपा हमेशा नया प्रयोग करती रही है। 1989 में जब छात्र नेता गोपीकृष्ण नेमा को यहां उम्मीदवार बनाया जो आश्चर्यजनक रहा। क्योंकि नेमा 4 नम्बर के निवासी थे वहीं यहां तो महेश जोशी जैसे कद्दावर नेता का वर्चस्व बना हुआ था, लेकिन चुनावी समीकरण में नेमा के लिए निर्दलीय उम्मीदवार रहे बाला बेग ने उनकी राह आसान कर दी और जोशी को हार का सामना करना पड़ा था। 2 साल बाद ही राम जन्मभूमि आंदोलन के चलते सरकार गिर गई और फिर चुनाव आ गए और गोपी नेमा के सामने महेश जोशी ने अपने करीबी अनवर खान को टिकिट दिलवा दिया। इस चुनाव में भी गोपी नेमा जीत गए।
5 साल बाद महेश जोशी ने अपने भतीजे अश्विन जोशी को मैदान में उतारा और नेमा चुनाव हार गए। भाजपा अब नए चेहरे की तलाश में थी। वहीं नेमा ने अपनी सक्रियता बरकरार रखी थी, लेकिन भाजपा के बड़े नेता प्यारेलाल खंडेलवाल ने अगले चुनाव में वरिष्ठ नेता विष्णुप्रसाद शुक्ला से नजदीकी के चलते उनके पुत्र राजेन्द्र शुक्ला का टिकिट ले आए। शुक्ला भी विधानसभा 1 नम्बर विधानसभा के निवासी थे और विधानसभा 3 नम्बर में उनका कोई विशेष होल्ड भी नहीं था। वे भी अश्विन जोशी से हार गए थे। 2 चुनाव जीतने से जोशी अब बड़े नेताओं में शामिल हो गए थे और भाजपा में नया चेहरा नहीं था तो फिर गोपी नेमा को मौका दिया गया, लेकिन बहुत कम वोटों से गोपी चुनाव हार गए।
आश्चर्यजनक माहौल बनाया
लगातार 3 चुनाव जीतने से अब अश्विन के सामने कोई बराबरी का नेता नहीं मिल रहा था तो भाजपा ने एक और नया प्रयोग करते हुए विधानसभा 1 नम्बर की पूर्व विधायक उषा ठाकुर को मैदान में उतार दिया। ठाकुर की उम्मीदवारी से जहां भाजपा के आश्चर्यजनक माहौल बना। वहीं अश्विन की जीत भी तय मानी जाने लगी, लेकिन चुनाव परिणाम में अश्विन जोशी उषा ठाकुर से हार गए।
फिर ले आए टिकट
चुनाव हारने के बाद अश्विन जोशी ने विधानसभा में अपनी सक्रियता बरकरार रखी और फिर टिकिट ले आए, लेकिन इस बार भाजपाइयों के आश्चर्यजनक नाम सामने आ गया। यहां से भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के पुत्र आकाश विजयवर्गीय को टिकिट दे दिया गया। मुकाबला बड़ा कशमकश रहा लेकिन जीत विजयवर्गीय के खाते में ही गई। 1989 से 2018 तक हुए चुनाव में भाजपा में यहां से स्थानीय उमीदवारों को दरकिनार करते हुए बाहरी प्रयोग ही किया गया, जो कभी सफल तो कभी असफल रहा।
जोशी बंधुओं ने सक्रियता बढ़ाई
तीन बार जीते व 2 बार हारे अश्विन जोशी फिर मैदान में हैं। वहीं महेश जोशी के पुत्र पिंटू जोशी ने पिछले कई सालोंं से अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। धार्मिक आयोजन हो या कांग्रेस की गतिविधि वे हर जगह नजर आ रहे हैं और अपनी बड़ी टीम भी तैयार कर चुके हैं। दोनों जोशी बन्धुओं में ही कोई एक कांग्रेस से मैदान में होगा।
भाजपा में बड़े नेता भी थे यहां
भाजपा में यहां शुरुआत में पूर्व लोकसभा स्पीकर रही सुमित्रा महाजन के पुत्र मंदार महाजन भी सक्रिय रहे, लेकिन धीरे-धीरे वे राजनीति से दूर हो गए। पूर्व पार्षद ललित पोरवाल भी यहां से विधानसभा लड़ने की हसरत लिए ही काम करते रहे, लेकिन उनको भी मौका नहीं मिला। पूर्व प्रदेश प्रवक्ता स्व.उमेश शर्मा भी काफी जोड़तोड़ में लगे रहे, लेकिन उनको भी सफलता नहीं मिली। ऐसे ही संघ में रचे बसे कॉलेज में छात्र राजनीति करने वाले जगदीश धनेरिया को भी मौका नहीं मिला। धनेरिया को तो निगम चुनाव में ही उपेक्षित किया गया तो वे निर्दलीय ही मैदान में उतर गए और जीत हासिल की। जबकि उनके सामने कई बड़े नेता हराने में लगे थे।